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(.३४ ) ठहरे हुए हैं जैसे षट् द्रव्य क्योंकि कोई भी द्रव्य अपने स्वभाबको नहीं छोडता है और नाही किसीको अपना गुण देता है। अपने गुणों अपेक्षा वह शुद्ध स्वभाववाले हैं तथा जैसे सिद्ध जो शुद्ध खभावमें न रहे पर गुण अपेक्षा सो अशुद्ध स्वभाव है जैसे कर्मयुक्त जीव ॥९॥ उपचरित स्वभावके दो भेद हैं। जैसे जीवको मूर्तिमान् कहना सो काँकी अपेक्षा करके उपचरित स्वभावके मतसे जीवको मूर्तिमान कह सक्ते हैं अपितु जीव अमूर्तिमान् पदार्थ है क्योंकि शरीरका धारण करना काँसे सो शरीरधारी मूर्तिमान अवश्य होता है तथा जीवको जड़बुद्धि युक्त कहना सो भी कमौकी अपेक्षा है, इसका नाम उपचरित स्वभाव है ॥ द्वितीय । सिद्धोंको सर्वदर्शी मानना वा सर्वज्ञ अनंत शक्ति युक्त कहना सो निज गुणापेक्षा कमाँसे रहित होनेके कारणसे है यह भी उपचरित स्वभाव ही है ॥ १०॥ इस प्रकार अनेकान्त मतमें परस्परापेक्षा २१ स्वभाव हुए | उक्त स्वभावों से जीच पुद्गलके द्रव्यार्थिक नयापेक्षा और पर्यायार्थिक नयापेक्षा २१ स्वभाव हैं जैसोक-चेतन स्वभाव १ मूर्त स्वभाव २ विभाव स्वभाव ३ एक प्रदेश स्वभाव ४ अशुद्ध स्वभाव ५ इन पांचोंके बिना धमादि तीन द्रव्योंके षोडश स्व