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( १० )
उत्तर - पुरुषार्थसिद्धिउपाय गा० १४ में कहा है कि "यह श्रात्मा रागादि और शरीरादि भावों से प्रसयुक्त होने पर भी अज्ञानियों को संयुक्त जैसा प्रतिभासता है वह प्रतिभास वास्तव में संसार का बीज है ।
प्रश्न ( २ ) - अब क्या करें तो धर्म की शुरुआत होकर वृद्धि और पूर्णता होवे ।
उत्तर- नौ प्रकार का पक्ष पृथक है। मेरी आत्मा इन प्रकार के पक्षों से भिन्न है ऐसा जानकर अपनी आत्मा की भोर दृष्टि करने से धर्म की शुरुआत होती है और अपने में विशेष स्थिरता करने से धर्म की वृद्धि और पूर्णता होती है ।
प्रश्न (३०) --प्रापने सात तत्त्वों के झूठे श्रद्धान को मिथ्यात्व कहा और सात तत्त्वों के सच्चे श्रद्धान को सम्यक्त्व कहा और सात तत्वों के नाम भी बताये परन्तु सात तत्त्व की परिभाषा क्या क्या है ?
उत्तर- (१) जीव अर्थात् भ्रात्मा । वह सदैव ज्ञातास्वरूप पर से भिन्न और त्रिकाल स्थायी है ।
(२) अजीव जिसमें चेतना - ज्ञानपना नहीं है ।
ऐसे पाँच द्रव्य हैं । इन पाँच में से धर्म, धर्म, प्रकाश और काल चार अरुपी हैं और एक पुदग्ल स्पर्श, रस, गंध, वर्ण सहित होने से रुपी है ।
(३) भाव मात्र = शुभाशुभ भावों का उत्पन्न होना वह भाव भाव है ।