Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 15
________________ ( ε) उत्तर - निज कारण परमात्मा में भौर नौ प्रकार के पक्षों में एकत्वपने का ज्ञान वह मिथ्याज्ञान है । प्रश्न ( २३ ) - संक्षेप में मिथ्याचारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर - निजकारण परमात्मा में और नौ प्रकार के पक्षों में एकत्वपने का प्राचरण वह मिथ्याचारित्र है । प्रश्न ( २४ ) - सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं ? उत्तर - निजकारण परमात्मा में धौर तो प्रकार के पक्षों में भिन्नत्व का श्रद्धान वह सम्यग्दर्शन है । प्रश्न २५) सम्यग्ज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर -- निजकारण परमात्मा में श्रौर नौ प्रकार के पक्षों में भिन्नत्व का ज्ञान, वह सम्यग्ज्ञान है । प्रश्न (२६) सम्यकचारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर-निज कारण परमात्मा में और नौ प्रकार के पक्षों में भिन्नत्व का प्राचरण वह सम्यकचारित्र है । प्रश्न (२७) - जिनेन्द्र भगवान ने मिथ्यात्व का बीज किसे कहा है? उत्तर - ब्रात्मा नौ प्रकार के पक्षों से प्रसंयुक्त होने पर भी अज्ञानी जीवों को नौ प्रकार के पक्ष संयुक्त जैसे प्रतिभासित होते हैं वह प्रतिभास ही वास्तव में सतार का बीज है। प्रश्न ( २८ ) - नौ प्रकार के पक्षों में संयुक्तपना मिथ्यात्व का बीज है । यह कहीं भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने कहा है ?

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