Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 10
________________ प्रश्न (७)-पर पदार्थों में तेरी मेरी मान्यता को छढाला की पहली ढाल में क्या कहा है ? उत्तर - "मोह महा मद पियो अनादि, भूल आपको भरमत वादि" अर्थ :- इस संसार में अज्ञानी जीव अनादिकाल से मोह में फंसकर, अपने आत्मा के स्वरूप को भूलकर चारों' गतियों में जन्म मरण धारण करके भटक रहा है किन्हीं पर पदार्थों के कारण या कर्मो के कारण नहीं भटक रहा है। प्रश्न (८).-एक मात्र मोह में फंसकर ही ससार में घूम रहा है। किसी पर के कारण नहीं. जरा इसे स्पष्ट समझाइये? उत्तर-(१) भगवान कुन्दकुन्द व अमृतचन्द्राचार्य जी ने समय- . सार गा० २३७ से २४१ तक एक मात्र रागादि को ही बध का कारण कहा है पर को नहीं। (२}- “मैं भूल स्वयं के वैभव को पर ममता में अटकाया हूँ" ऐसा पूजा में भी पाया है। १३)- जैसे तोता नलनी को पकड़ कर इसने मुझे पकड़ा है वैसे ही अज्ञानी मात्र अपनी मूर्खता से मानता है स्त्री पुत्रादि ने मुझे पकड़ा है। । ४)- जैसे बन्दर ने चने के लिए घड़े में हाथ डाला तो मुट्ठी बंद होने पर न निकलने पर इसने मुझे पकड़ा है वैसे ही अज्ञानी मानता है। इसलिए यह सिद्ध हुआ मात्र एकत्वबुद्धि भ्रमबुद्धि ही एक मात्र संसार का कारण है पर नहीं है।

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