Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1915 Book 11 Jain Itihas Sahitya Ank
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
View full book text
________________
४८०
श्री जैन श्वे. है. डेन्स्ड.
श्रीहरिभद्रसूरि के जीवन - इतिहासकी संदिग्ध बातें |
लेखक - मुनि कल्याणविजय ।
पूर्व कालमें हिंदुस्थानमें- विशेषतः जैन समाजमें ऐतिहासिक चरित लिखने का रिवाज बहुत कम था, अगर किसी महापुरुष का चरित कोई लिखता भी तो खास मुद्देकी बातें लेकर अन्य छोड देता । सोमप्रभाचार्य के समय ( १२४१ ) तक इस अयोग्य रूढिका प्रायः भंग नहीं हुआ । जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण - देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण - कोट्याचार्य - मलयगिरि सूरि वगैरह अनेक महोपकारी धुरंधर जैनाचार्यों के जीवन - इतिहासों से जो जैनप्रजा अज्ञ है इस का भी हेतु वह रूढि ही है ।
आचार्य - हरिभद्र के जीवनचरित की भी छिन्न-भिन्न दशा इसी कुरु का फल है | खैर |
जो भावि था हो गया, अब इस भूतकालकी बात का शोक करना वृथा है, अब तो वर्तमान पर ही दृष्टि दो, अपना जो प्रथम कर्तव्य है उसे हाथमें लेलो ।
सज्जन जैनो ! आलस्य दूर करो ऐश आराम करना आपका प्रथम कर्तव्य नहीं है, नामवरी के लिये हजारों रुपयों का धुआँ उड़ा देना आपका प्रथम कर्तव्य नहीं हैं, और प्रमाद निद्रामें पडे रहना भी आपका प्रथम कर्तव्य नहीं है। ऐश आराम का नाम तक भूल जाओ ! नामवरीकी लालसा को सौ कोश तक दूर फेंक दो ! और साहित्योद्धार व इतिहास खोज के लिये कटिबद्ध हो जाओ ? बस यही आपका प्रथम कर्तव्य है, इसी से आपका जो साध्य बिन्दु है सिद्ध होगा, और जिन ऐतिहासिक बातों के बारे में आप निराश हो बैठे हैं उनका भी पता इसी से लगेगा |
पाठकगण ! शोध खोज के अभाव से ऐतिहासिक बातों में कैसी गड़बड़ी हो जाती है इस बातका आपको अनुभव कराने के लिये श्रीहरिभद्रसूरि के जीवन इतिहास में से सिर्फ दो-चार संदिग्ध बातें और उनका निर्णय आ पको समर्पित करना हूं !