Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1915 Book 11 Jain Itihas Sahitya Ank
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 349
________________ ૫૨૯ शाकटायनका ही दूसरा नाम पाल्यकीर्ति जान पडता है । शाकटायनकी प्रक्रिया बनाते समय यह संभव नहीं कि अभयचन्द्रसूरि शाकटायन को छोड़कर अन्य किसी वैयाकरणको नमस्कार करें । मन- शाडटायन. मेरी समझमें शाकटायनका असली नाम पाल्यकीर्ति ही होगा । वे बड़े भारी वैयाकरण थे और वैयाकरणोंमें शाकटायनका नाम बहुत प्रसिद्ध है, इसलिए बहुत संभव है कि लोग उन्हें शाकटायन कहने लगे हों । जिस तरह कवियों में कालिदासकी प्रसिद्धि अधिक होनेसे पीछे के कई कवि कालिदासके नामसे प्रसिद्ध हो गये थे, उसी तरह ये भी शाकटायनके नामसे प्रसिद्ध हो गये होंगे । शाकटायन स्फोटायन आदि नाम उस समय रक्खे भी नहीं जाते थे जब कि यह व्याकरण बना है। उस समय विजयकीर्ति, अर्ककीर्ति, पाल्यकीर्ति जैसे नाम रखने की ही प्रथा थी । निर्णयसागर प्रेसकी प्राचीन लेखमाला के प्रथम भाग में राष्ट्रकूट वंशीय द्वितीय प्रभूतवर्ष महीपतिका एक दानपत्र छपा है जिसमें शिलाग्राम के जिनमन्दिर को - 'जालमङ्गल' नामक ग्रामके देनेका उल्लेख है । इसमें यापनीयसंघ के श्रीकीत्ति, विजयकीर्ति और अर्ककीर्ति इन तीन आचार्यों का उल्लेख है । इससे भी मालूम होता है कि पाल्यकीर्ति भी यापनीय संघके आचार्य होंगे और उन्हींका नाम शाकटायन होगा | 1 सारांश यह है कि जैन शाकटायन विक्रमकी नववीं दशवीं शताब्दि में हुए हैं 6 । उनका दूसरा नाम पाल्यकीर्ति था । वे यापनीय' नामक जैन संघके आचार्य थे । यापनीय संघकी स्थापना विक्रमकी मृत्युके ७०५ वर्ष बाद दक्षिणके कल्याण नामक नगर में हुई थी । नामी वैयाकरण होने के कारण वे शाकटायनके नाम से प्रसिद्ध होगये थे । वैदिक शाकटायनसे जो पाणिनिसे पहले हुए हैं इसका कोई सम्बन्ध नहीं है । जैन विद्वानोंने यह कभी नहीं कहा कि ये शाकटायन वे ही शाकटायन हैं जिनका उल्लेख पाणिनिने किया है । यह कल्पना मि० गुस्तव आपर्ट साहबहकी थी जो असत्य सिद्ध हो चुकी । चन्दाबाड़ी, बम्बई । श्रावण शुक्ला द्वितीया १९७२ वि० - नाथूराम प्रेमी. } Sea

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