Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1915 Book 11 Jain Itihas Sahitya Ank
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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मैन-टायन. उसके पीछेकी है। अजितसेन अपने अलंकारचिन्तामणिमें जिनसेन और वाग्भटालंकारका उल्लेख करते हैं, अतएव ये भी अमोघवर्षके बहुत पीछेके विद्वान् हैं । छठी टीका भावसेन त्रैविद्य देवकी है और ये भावसेन संभवतः वे ही हैं जो कातंत्रप्रक्रियाके रचयिता हैं । सातवीं टीका रूपसिद्धि है जो वादिराजसूरिके सतीर्थ दयापाल मुनिकी बनाई हुई है और उसके बननेका समय विक्रम संवत् १०८३ के लगभग है। यदि शाकटायन पाणिनि के पहलेका व्याकरण होता तो अवश्य ही उसकी कोई प्राचीन टीका भी मिलती।
२ शाकटायनके सूत्रपाटमें इन्द्र, सिद्धनन्दि, और आर्यवत्र इन तीन आचार्यों का उल्लेख मिलता है। इनमें से हमारा अनुमान है कि 'सिद्धनन्दि ' प्रसिद्ध जैनेन्द्र व्याकरणके रचयिता पूज्यपाद या 'देवनन्दि' का दूसरा नाम है । देवनन्दिको सिद्धनन्दि कह सकते हैं । ' सिद्ध' शब्द मुनियों आचार्यों और देवोंके लिए अकसर व्यवहृत होता है। इसी तरह 'आर्य वज्र वज्रनन्दि आचार्यका नामान्तर है। 'आर्य' शब्द आचार्यका पयार्यवाची है । पूज्यपादके शिष्य वज्रनन्दि जिन्होंने द्रविड संघकी स्थापना कीथी-बहुत बड़े विद्वान हो गये हैं । ये विक्रमकी मृत्यु के ५३६ वर्ष बाद हुए हैं। हरिवंशपुराणके कर्त्ताने देवनन्दि (पूज्यपाद ) के बाद ही इन्हें · वज्रसूरि ' के नामसे स्मरण किया है।
इन्द्रचन्द्रार्कजैनेन्द्रव्यापिव्याकरणेक्षणः । देवस्य देवनन्दस्य न वंदंते गिरः कथम् ॥ वज्रमूरविचारण्यः सहेत्वोर्वन्धमोक्षयोः ।
प्रमाणं धर्मशास्त्राणां प्रवक्तृणामिवोक्तयः ॥ संभव है कि इनका बनाया हुआ कोई व्याकरण ग्रन्थ भी हो। इन दोनों नामों से भी मालूम होता है कि शाकटायन व्याकरण जितना प्राचीन बतलाया जाता था उतना प्राचीन नहीं है ।
३ यदि शाकटायन प्राचीन व्याकरण होता कमसे कम पूज्यपाद स्वामीसे भी पहलेका होता तो अवश्य ही वे उसका उल्लेख अपने जैनेन्द्रव्याकरणमें करते परन्तु उसमें कहीं भी शाकटायनके किसी मतका उल्लेख नहीं है । यद्यपि यह विशेष बलवती युक्ति नहीं है, तो भी कामकी है ।