Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1915 Book 11 Jain Itihas Sahitya Ank
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 345
________________ मैन- शाडटायन. પરપ मुनिमहाशय के इस मत से - कि शाकटायन दिगम्बर थे हम तब तक सहमत नहीं हो सकते जब तक कि यह न मालूम हो जाय कि यापनीय संघ के सिद्धान्त विशेषतः श्वेताम्बर सम्प्रदाय से मिलते हैं या दिगम्बर सम्प्रदायसे । और तन तक उन्हें श्वेताम्बर दिगम्बर कहनेकी अपेक्षा 'यापनीय जैन' कहना ही ठीक होगा। सम्मिलित दिगम्बर संघका नाम मूलसंघ है। इसमें चार भेद हैं नन्दिसंघ, सेनसंघ, देवसंघ और सिंहसंघ । इन चारों संघों में सिद्धान्तभेद कोई नहीं है- ये केवल स्थानास्थितिकी विशेषतासे हो गये हैं × । इन प्रत्येकमें सरस्वती गच्छ, बलात्कार गण आदि नामधारी कई गच्छ और गण भी है; परन्तु उनमें भी कोई भिन्नता नहीं है । उक्त चार संघोंके सिवाय काष्ठा संघ, द्राविड़ संघ, निःपिच्छ संघ और यापनीय संघ, इन चार संघोंका और भी उल्लेख मिलता है; परन्तु इन्द्रनान्दि और देवसेन आदि दिगम्बराय ने इन्हें श्वेताम्बरों के ही समान जैनाभास बतलाया है । नीतिसारमें स्पष्ट लिखा है: गोपुच्छकः श्वेतवासा द्राविडो यापनीयकः । निः पिच्छिकच पंचैते जैनाभासाः प्रकीर्तिताः ||१०|| अर्थात् गोपुच्छक (काष्ठासंघ), श्वेताम्बर, द्राविड़, यापनीय और निःपिच्छिक ( माथुर संघ ) ये पाँच जैनाभास हैं । " जैनाभास ' शब्दका वही अर्थ है जो श्वेताम्बरसम्प्रदाय में ' निन्दव ' का होता है इनमें से काष्ठासंघ और मारसंघ के सिद्धान्तोंसे हम थोड़े बहुत परिचित हैं । ये दिगम्बर सम्प्रदायसे बहुत ही सूक्ष्म -- प्रायः नहीं के बराबर मतभेद रखते हैं और इस समय तो काष्ठासंघ में और मूलसंघ में कोई भी भेद नहीं रह गया है । ऐसी दशा में काष्ठासंघ के समान हम यापनीयसंघको भी उसकी जैनाभासों में गणना होने पर भी हम दिगम्बर सम्प्रदायमें गिन सकते थे; परन्तु दर्शनसार में देवसेनसूरिने श्रीकलश नामके श्वेताम्बर से यापनीय संघकी उप्तति बतलाई है । x सिंहसंघो नन्दिसंघः सेनसंघो महाप्रभः । देवसंघ इति स्पष्टं स्थाना स्थितिविशेषतः ॥ गणगच्छादयस्तेभ्यो जाताः स्वपर सोख्यदाः । न तत्र भेदः कोप्यस्ति प्रवज्यादिषु कर्मसु ॥ ८ ॥ - नीतिसार |

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