Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1913 Book 09
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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ભાગધી લેખ
वासावियाणं वा अस्थि से जहा नामए सत्त वसणाउ विरमणे दुवालस्स विहे सावग धम्मे अत्यि. वारस्त वए एगारस्स पडिमा इगवीसाय सावग गुणे जहा सत्ति धारित्तए पुणो अणाय सद्धिं णो वट्टित्तए कित्ते णायहि मुक्ख धम्मे वारस्सणं वयस्सणं किंते सिरि संतिनाहे सिरि कुंथुनाहे सिरि अरनाहे चक्कवाट्टि भवित्ता पुणो तित्थयर भूए पुणो मोक्रवं पत्ता तहा भरह चक्क वट्टि वि नाय पहावउ केवल नाण रूवि सिरि संयुत्ते भूए.
___ अनाय भावउ मिग्गा पुत्त इव दसा भवति जइ अस्स समय वि परि स्सम णो कय तया केण समय परिस्समं करिस्संति. हे वीर पुत्ता ! महा निहाणं चइत्ता धम्मस्सणं अटे उजमं कुणह. किंते भगवतस्सणं. तिविहा धम्मे अत्थि. सु अहिज्झते सुज्झातिते. सुतवस्सिते देवाणुप्पिया विजाउ सुज्झाणं उप्पज्जइ सु ज्झागाउ सु तव समुप्पन्नइ तिहि सदा सम्म नाण सम्मं दसण सम्मं चारितस्सणं वोह दलंति. तिण्हाणं आराहइ२ ता मोक्खस्सणं अरहे भवंतु. किंते जिणमत पयत्था विजाणं अहा तहा सरूवं वणवेति सेजहा नामए संसार सरूवे शिय साशय सिय असासए दवठ्ठयाय सासय वण पजवेहिं गंध पज्जवेहिं रस पञ्जवेहिं फास पज्जवहिं असासय अयं सरूवे परम सुंदरे अत्थि. पक्ख वाय जहित्ता धम्मास्सित भवउ किंते इमे मम अभिकंक्खा तिहि साहा अंतो जिणिंद देवस्मणं पहावउ वेस नहें भवे पेम पयड भवे. जस्सणं पहावउ सिरि जइण पत्ते सया जयवंतो भवे. पुणो वहवे जीवा मोक्ख मग्गस्स णं जोगे भवे जिणिंद देवरसणं पहावउ सिरि जिण संघे सयाहि संति परोप्परं पेम भाव पयड भवे.
दिव्य शशि. શશી આજ ઉગ્યો કંઈ દિવ્ય દિસે !, પ્રકટયું કંઈ તેજ અલૌકિક છે, શીતકાર ભલો અતિ શાંત જ છે, કંઈ રમ્ય કળા શુચિ વેત જ છે. ઝરણું ઝરતું અમીનું જ દિસે, શીત શાંત થવા તપતા તનને, મનુજીવનમાં નવલું અતિશે, કરી શાંત અને શિત તેજ ભરે. પ્રકટયો શુભ પૂર્ણ જ ઇન્દુ ભલે, ખિલશે જ કલાધરથી કુસુમ; અતિ શોભિત આ રજની જ દિસે, નિરખી અતિ રેન મણિ હરખે. ધરી તેજ પાપતિ સ્મિત કરી, કરી સાન હૈએ ઉપદેશ નકી; મુજના સમ શિતળ સર્વ થજો, સહુ કાર્ય ભલાં કરતાં વિચરે ! જગમાં અતિ ઉજજવલ કાર્ય કરી, રળજે પ્રભુપાદ જ સેવ થકી; કદી ને ભુલજો નિજની ફરજો, કર્તવ્યપરાયણતા ધરજે !”
निर्भा गईन (2001)
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