Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1913 Book 09
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference

View full book text
Previous | Next

Page 345
________________ " “ जैनाचार्य–श्रीमद्विजयानंद सूरि ' आय. आनन्दविजय ! श्रीमन्नात्माराम ! महामुने ! | मदीयनिखिलप्रश्न व्याख्यातः ! शास्त्रपारग ! ॥ ३ कृतज्ञता चिन्हमिदं ग्रन्थसंस्करणं कृतिन् ! | यत्नसम्पादितं तुभ्यं श्रद्धयोत्सृज्यते मया || ४ || एवं दूसरी दफा गुजरात, काठियावाड, मालवा, मेवाड, मारवाड, मध्यप्रदेश, राजपुताना, पंजाब प्रभृति अनेक देशोंमें विचर जैन धर्मकी तार घोषणा करते हुए - विक्रम संवत् १९५० को आप अमृतसर में पधारे. यहांपर मुंबईकी "दी-जैन एसो - सिएसन ऑफ इंडिया " के द्वारा आपको चिकागो ( अमेरिका ) का पत्र मिला जिसमें इसवी सन १९९३ में होनेवाली सर्व धर्मगुरुओं की पार्लिमेंट ( परिषद् ) में उपस्थित होनेके लिये आपसे प्रार्थना की गईथी. परन्तु समुद्र यान के विना उपायांतर नहीं होने के कारण आपने जानेके लिये सर्वथा अनिच्छा प्रकट की. वहांसे द्वितीय पत्रके आनेपर उनके लेखानुसार अपने दो फोटु और संक्षिप्त जीवनचरित्र एवं एक निबंध लिखकर भेज दिया. ( यह निबंध चिकागो प्रश्नोत्तर इस नाम से लाहोर में छपा है. ) has so दी वर्लडस पार्लिमेन्ट ऑफ रिलिजन्स ( The worläs Parliament of Religions: ) नामकी पुस्तक के २१ पृष्ठमें आपका फोटु देकर लिखा है कि- Noman peculiarly identified himself with the interests of the Jain Commnity as Muni Atmaramji. He is one of the noble band sworn from the day of initiation to the end of life to work day night for the high mission they have undertaken. He is the high priest of the Jain Community and is recognised as the highest living authority on Jain Reli gion and literature by Orintal Scholars. जैसी योग्यतासे मुनिश्री आत्मारामजीने अपने आपको जैन धर्मके हितमें अनुरक्त किया है ऐसे किसी महात्माने नहीं किया ! संयम ( मुनित्रत ) ग्रहण के दिन से लेकर जीवन पर्यंत जिन प्रशस्त महाशयोंने रात्रिं दिवा सहोद्योगी रहनेका नियम किया हैं उनमेसे आप एक हैं. जैन समाज के आप परम आचार्य हैं. एवं प्राच्य विद्वानोंने जैन धर्म तथा जैन साहित्य में आपको सर्वोत्तम प्रमाण माना है । अमृतसर में कुछार्दन निवास कर आप जंडियाला में आए. इन लोगोंके शुभ पुण्यके उदयसे चतुर्मास आपका यहां पर ही हुआ. चतुर्मासिके अनन्तर शहर २ ग्राम २ में निरंतर भ्रमण कर दो वर्षतक आपने पंजाब देशके ही सौभाग्यको बढाया ! आपकी धर्मयात्रा के विषय में विशेष कुछ न कहकर इतनाही कहदेना पाठ - कोंके लिये सन्तोषकर होगा कि, विस हजार स्त्रीमनुष्योंको धर्म पथपर चलाने के

Loading...

Page Navigation
1 ... 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420