Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1913 Book 09
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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जन कान्फरन्स हरल्ड.
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अवलोकन होजाती है, और जिवितव्य तो यम राजा के हाथ में है. माता पिता कहते है हमारी संतान बडी होरही है और यमराज कहते है कि हमारे दांत निचे आरही है. इधर अपन कहते है कि पुत्र पांच वर्षका हुआ. इधर आयुष्य में पांच वर्ष कम होगे है ऐसी अस्थिरता होने परभी जो मनुष्य परलोक के हितार्थ भी धर्म साध्यार्थ अवज्ञा करते है उन पुरुषोंकी श्रेष्टा और विषय लालसा आश्चर्यजनक है.
विषय सुख-काम भोगका रस, यह तो भोग भोगने तक ही मधुर है और तत् पश्चात् अप्रियता होना स्वाभाविक है. भोजनका स्वाद भूख लगने पर जीमने तक है| मधुर है परंतु धर्म की मधुरता तो चिरकाल स्थायी है. वास्ते काम भोग के रसमें लिप्त होकर धर्म साध्य से विमुख रहना अनुचित है. हे बंधु ! तुझे अक्षयामृत समान मधुर मीठे और सात्त्विक रस का स्वाद लेना हो तो धर्म साधन के लिये कमर कसकर तैयार हो जा और मनुष्यत्व प्राप्ति का साध्य बिंदु साध
भोगे रोग भयं सुखे क्षय भयं । बितेऽन्थिम मृद्भयम् ॥ दास्ये स्वामिभयं गुणे खलभयं । वंशे कुयोषिद्भयम् ॥ १॥ माने म्लानि भय जये रिपुभयं । काये कृतांताद्भयम् ॥
सर्व नाम भयं भवेत्र भविना । वैराग्य मेवाऽभयम् ॥२॥ हे सज्जन तुझे स्त्री के अधर रुप स्वाद से तरुणीकी युवावस्था से सुख उत्पन्न होता है, मगर यह कामिनी के प्रिय सुख तो वृद्धावस्था मे नष्ट हो जाते है और भोगादि से अनेक प्रकार की व्याधियों प्राप्त होती हैं और जो विश्वमें नाना प्रकार के सुख हैं जिन्हे प्राणी अखंड आनंद के प्रवाह तुल्य मानता है, जैसे कि धन दौलत पुत्र परिवार मकान महेल बाग बगीचे कनक कामिनी और कीर्ति गाडी मोटार और बग्गी जो विविध प्रकार की वस्तुएं संसार में आनंद तुल्य मानी गई हैं वे भी आंतम नाश होने वाली हैं, और द्रव्य आभूषणादि में अग्नि प्रज्वलित होने से प्रायः नष्टता का भय, तस्कर लुटेरों कि चिंता और अंतिम राजा का भय. होता है, नोकरी करने में अपने मालिक का भय रखना पडता हैं; क्यों कि अल्प भूलचुक में भी पगार की न्युनतादिका ख्याल रखना जरूरी हैं इसी तरह गुणमें खल का भय, और वंश में कुनारी का भय, जो व्यभिचारणी हो मान में प्रायः नष्टता भय, जय प्राप्ति में दुश्मनों की चिंता शरीर को बिना अग्नि दग्ध बनाये देती है, और देह के विषे यम राजाका संपूर्ण भय रहता हैं इस तरह संसार में सर्व भय युक्त पदार्थ हैं, निर्भय तो एक धर्म हैं (वैराग्य है ) कि जिस की प्रशंसा अनिर्वचनिय हैं. कहांतक कथन किया जावे ?