Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1913 Book 09
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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"जैनाचार्य-श्रीमद्विजयानंद सूरि."
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- आपके गुरुका नाम जीवनराम था, साधु होनेपर भी आप पूर्व नामसे ही प्रसिद्ध रहे.
___ इस समय आपकी अवस्था सतरह वर्षकी थी. आपकी प्रतिभाका प्रभाव कुछ अलौकिकही था! दिनभरमें आप दो अढाईसौ श्लोक याद कर जाते थे ! [ ढुंढक मतके माने हुए बत्तीस सूत्रोंको कंठ कर लिया, और इनके अर्थभी इन लोगोंके कहे मुताबिक समझ लिये ! ऐसा कोइभी ढूंढ़क मतका रहस्य अवशिष्ट नहीं रहा, जिसका आपको ज्ञान नहीं था. आप इसवक्त वीस वर्षके थे. पाठकोंको यह भी स्मरण रहे कि, इतने समयमें आपने देशाटनभी बहुत किया; कइ एक पुरुषोंसे धर्मसंबंधी विचारका, योग्य पुरुषोंसे मिलापका और जैनधर्मके वास्तविक चित्रदर्शनकाभी अनुभव आपको हुआ.
टुंढकमतसे उपरामता. ढुंढक मतके निखिल रहस्यको समझकर आपकी हृदयस्थलिमें बहुतसे संदेहांकुर उत्पन्न होने लगे.
शास्त्राभ्यासकुछ समयके बाद एक सुयोग्य व्यक्तिसे आपकी भेट हुई. इसके सदुपदेशसे रोपड़ निवासी पंडित श्री सदानंदजीसे और मालेर कोटला निवासी श्रीमान् पंडित अनंतरामजीसे आपने व्याकरण और साहित्यका अध्ययन किया. इसके अनंतर पट्ट निवासी पंडित श्री आत्मारामजी के पास आपने न्याय, सांख्य, वेदांत आदि दर्शन ग्रंथ पढ़े. इससमय शास्त्रीय योग्यताकी त्रुटि आपमें नहीं रहीथी. शास्त्रपारगामी होने के बाद जब आप पूर्वपठित मतके रहस्यपर विचार करने लगे तबतो कुछ और ही रंग नजर आने लगा! सत्य अर्थोंकों आपके प्रशस्त हृदयमें सदैवके लिये स्थान मिलने लगा. किसीने क्याही सत्य कहा है-व्याकरणेन विना ह्यन्धा-व्याकरणके विना मनुष्य अंधा है जिधर इच्छा हो ले जाओ. आप जैन ग्रंथोंका विशेष रूपसे अवलोकन करने लगे. थोडे ही समयमें जैन ग्रंथोंके ज्ञानमें आपने अपूर्वही सफलता प्राप्तकी ! आपकी लोकोत्तर प्रतिभाकी प्रशंसा करनी सूर्यको अंगुलीसे दिखानाहै ! जैन धर्मके स्याद्वादमंजरी, रत्नाकरावतारिका, वादार्णव ( सम्मातितर्क), शद्वांभोनि। गंधहस्तिमहाभाष्य (विशेषावश्यक) प्रभृति ग्रंथोको आप बडी योग्यता पुरस्सर पढाया करतेथे.
ढुंढक मतका त्याग. __ शास्त्रविचारद्वारा जैन धर्मके वास्तविक तत्वके हृदयगत होते ही ढुंढक मतका त्याग किया.