Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1913 Book 09
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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___जैन कॉन्फरन्स हरल्ड.
यद्यपि प्रारंभमें आपको वहुतसे कष्ट उठाने पड़े ! कदाग्रही साधु वा गृहस्थोंने आपसे बहुत द्वेष बढाया ! तथापि आप निर्भयथे! " सत्येनास्ति भयं कचित् इस नादकी गर्जना आपके हृदयमें प्रतिक्षण हुआ करतिथी ! आपका यह अटल विश्वास था कि, यदि मैं सच्चाई पर हूं तो संसारमें ऐसी कोई शक्ति नहीं जो मेरा सामना करे ! चाहे संसार भरकी विपत्तियें मेरे ऊपर अधिरें परंतु सत्यधर्मका डंका बजाये विना न रहूंगा ! किसीने क्याही विचित्र कहाहै!
" सदाकतके लियेगरजान जाती है तो जानेदो !
मुसीबत पर मुसवित भी अगर आती तो आनेदो"! इसतरह निर्भय होकर स्थान स्थान में जैन धर्मका प्रचारकर शतशः स्त्री मनुष्यको सीधे रस्ते पर लाते हुए पंजाब प्रांतसे पंदरा साधुओंको साथ लेकर अर्बुदाचल (आबू)
ओर सिध्धाचल तीर्थकी यात्रा कर विक्रमाब्द १९३२ में आप अहमदावाद पधारे. पाठकोंको यह भी ख्याल रहेकि, अभीतक वेषआपका दुढ़क मतका ही था ! केवल मुखपत्ती उतार दी थी ! यहांपर मुनिराज श्रीबुध्धिबिजयजी * के पास सनातन जैन धर्म की दीक्षा गृहणकर आपने ढुंढ़क मतके वेषको त्याग दिया ! बाकीके पंदरह साधु आपके ही शिष्य हुए. इस समय आपकी आयु ३९ वर्षकी थी. दीक्षाके समय आपका नाम आनंदविजय रक्खागया. परंतु आप प्रसिद्ध प्रायः आत्मारामजीके नामसे ही रहे !
अहमदावादसे प्रयाणकर गुजरात. देशके प्रसिद्ध २ शहरों ओर नगरोंमें निर्भय होकर जैनधर्मकी विजयपताकाको फिराते हुए पुनः सिद्धाचल, गिरनार, तारंगा, अर्बुदाचल, पंचतीर्थी राणकपुर आदि पवित्र तीर्थोकी यात्रा करते हुए आप जोधपुर ( मारवाड़ ) में पहुंचे. यहां पर बहुतसे ढुंढ़क साधुओंका दल जमा था. ऐसी किं वदंती भी थी कि, यह लोग शास्त्रार्थ करेंगे, परंतु आपके आनेसे एक दिन प्रथम ही सबके सब चल दिये ! लोगोंकी विशेष प्रार्थना और धर्मोपदेशकी नितांत आवश्यकताको समझकर चतुर्मास आपने जोधपुर में ही किया. यहांपर आपके सत्यगर्मित हितकर उपदेशरूप सुधावृष्टिसे सूखा हुआ जैनधर्मका स्रोत फिरसे प्रवाहित होने लगा. चतुर्मा
___* यह महात्मा भी प्रथम ढुढ़क मतमें हीथे. आपका नाम बूटेराय था. आपकी जन्मभूमि भी पंजाब ही थी. आपने भी ढुढ़क मतको त्याग अहमदावादमें ही जैन धर्मकी दीक्षाको ग्रहण कियाथा. आपके पूज्यगुरु मणिविजयजीके नामसे प्रसिध्ध थे. दीक्षित होने पर आपका नाम " बुध्धिविजय " रक्खा गया था। परंतु प्रसिध्ध आप पूर्व नामसे ही रहे.