Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1913 Book 09
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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"जैनाचार्य-श्रीमद्विजयानंद सूरि."
जैन धर्मके प्रसिद्ध तीर्थ " सिद्धाचल" ( पालीताना-काठियावाड) में आपकी पाषाणमयी प्रतिमा भी स्थापित है. यहां पर प्रतिवर्ष आपकी स्वर्गवास तिथिके दिन उत्सवभी बडे समारोहसे होता है, जोकि "श्रीआत्मानंद जयंती" के नामसे प्रसिद्ध है. यह उत्सव अन्यान्य स्थानोंमे भी प्रतिवर्ष होता है. होशियारपुर (पंजाब ) में आपकी भव्य मूर्ति मूर्तिपूजाके वास्तविक रहस्यको बतला रहि है! एवं बडौदा, जयपुर, अंबाला, लुधीआना प्रभृति बहुतसे शहारोंमें आपकी मूर्ति व चरणपादुका स्थापित हैं.
भारत भूमिको शोभाशून्य किये आपको सोलह वर्ष हो चुके है. आप जातिके ब्रह्मक्षत्रिय थे. जन्मभूमि आपकी पंजाब जिला फिरोजपूर ग्राम लेहरा में थी.
जन्म और नामकरण आपका जन्म विक्रम संवत् १८९३ चैत्र शुक्ल प्रतिपद गुरुवारको हुआ था. शास्त्रानुसार संस्कार होने पर आपका नाम "आत्माराम" रखा गया.
बाल्यकाल जन्म समयसेही अन्य बालकोंसे आपका सौंदर्य निरालाथा. आपके मुखपर दक्षिण भागमें रक्तिमापूरित एक लशुनका चिन्ह था. उसकी शोभा भी सौन्दर्यके लिये सुवर्णमें पद्मराग मणिका काम देती थी! आपके जन्म ग्रहोंको विचार कर एक ज्योतिषीने आपके पितासे कहाथाकि, ( यह बालक यातो किसी योग्य राज्यासनको विभूषित करनेवाला होगां या निखिल जगमान्य होगा! ( निदान यहबात वास्तविकमें सत्य ही निकली. ) आपके भावि विचार साम्राज्यका परिचय शिशुचर्याकेही कईएक उदाहरणोंमें दे दियाथा ! ऐसा श्रवण करनेमें आया है.
आपके पिता एक साधारण स्थितिके मनुष्योमें से थे! कुछ पठितभी नहीं थे ! नाही उस समय इसप्रांतमें कोई योग्य पाठशाला थीं! इसलिये बालक्रीडामेही दशवर्ष आपने व्यतीत किये! एक योग्य मित्रके सदुपदेशसे पिताने हिन्दी भाषाकी शिक्षाके लिये आपको एक ग्रामीण पंडितके सपूर्द किया-इसके पाससे हिन्दीभाषाके लिखने व पढ़नेका ज्ञान आपने शीघ्रही प्राप्त करलिया.
पिताका देहान्त शिक्षाकी प्रारंभिक दशामें ही पिताका आपसे सदैवके लिये वियोग होगया! पिताकी मुत्यु इस वक्त आपको नितांत शोकजनक हुई!-सत्य है! पिताका जीवन किसको प्यारा नहीं?