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पाठ १५वी प्रसन्भाय की समझ : जिसके योग में पवित्र शास्त्र का उच्चा रण न हो सके उसे असझाय कहते हैं वो इस प्रकार हैं.
१. अस्थि, (हड्डी) मांस, रुधिर, विष्टा ' और पंचेन्द्रिय का क्लेवर जिस मकान की हद में पड़ा हो उस हद्द में शास्त्र नहीं पढना ( असज्झाय ).
२ राजा अथवा बड़े माननीय मनुष्य का ' मृत्यु होजावे तव सज्झाय.
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३ महान युद्ध होता हो तब उसकी हद में असझाय
४ वड़ा तारा गिरे या उल्कापात हो तव
असज्झाय.
५ चन्द्र सूर्य का ग्रहण रहे वहां तक अस ज्झाय.
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६ दिशाएं धुंधुली हो जावे तब असंज्झाय ७ स्वाति नक्षत्र के पीछे और आद्रा नक्षत्रके पहिले कढ़ाका, गाजवीज, छींटे. बारीस होवे तो उतने समय तक: सन्काय
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