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THE FREE INDOLOGICAL
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-The TFIC Team.
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mama
डॉक्टर धारशी गुलाबचंद संघाणी. H....I.S. .. के प्रबन्ध से श्री जैन सुधारक प्रेस. अजमेर
में मुद्रित.
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प्रस्तावना।
हमने आजतक जितनी पुस्तके प्रकाशित कर "जैन संसार" के सन्मुख रक्खी, उनका जिस खुले दिल से स्वागत किया गया, उसे देख हम उत्साहित हो अपने विज्ञ पाठकों के सन्मुख एक अति उपयोगी पुस्तक (कि जिसमें मुख्य निती, सदाचार, व्यवहार और धर्म क्रिया इन चार विषयों पर छोटे २ वाक्यों में वर्णन किया गया है कि जिसकी रचना गुजराती भाषा में लींबड़ी सम्प्रदाय के महामुनि श्री गुलावचन्द जी स्वामी तथा मुनिराज श्री वीरजी स्वामी ने की थी कि जिसकी उपयोग्यता पर मुग्ध होकर श्रीमान् दयाकोर खेमचंद नभावसार • बम्बई ने प्रकाशित करा सर्व साधारण को मुस्त वितीर्ण की थी, कि जिसका राष्ट्रीय भाषा हिन्दी में होना अति आवश्यक स.
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(२)
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म इसका अनुवाद कराकर ) रख रहे हैं पूर्ण आशा है कि वह इसे भी अपना कर उत्साहित करेंगे कि जिस से हम आगे भी इसी प्रकार सेवा कर सकें ।
समस्त जैन पाठशालाओं के अधिकारियों से खास तौर पर निवेदन किया जाता है कि as विषयों की शिक्षा देने वाली इस पुस्तक को अपने २ आधीन सर्व पाठशालाओं में अवश्य प्रवेश करें, किं जिसके पठन से विद्यार्थियों के कोमल हृदय में अच्छे संस्कार पड़ेंगे और उनका जीवन एक आदर्श जीवन हो जावेगा ।
मनुष्य मात्र को इस पुस्तक के श्रा घोपांत पढने के लिये ही नहीं मगर इस में की हरेक कलम को स्वयं व्यवहार कर और आश्रित जिज्ञासुओं से व्यवहार में लाने के लिये मैं ग्रह पूर्वक विनती करता हूं ।
अन्त में हम उक्त स्वामीजी महाराज का उपकार मानते हैं क्योंकि जिन विषयों को
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(३)
इस छोटी सी पुस्तक में आपने संग्रह कर जिस उत्तमता से समझाया है । वह यथार्थ में श्राप से ही योग्य लेखकों का हिस्सा हो सका है वरना इनमें से एक २ विषय को पृथक् २ ग्रन्थों में भी बड़ी मुशकिल से समझाया जा सका।
मैं श्रीमान् सूरजमलजी गुलाबचन्दजी छलाणी जैतारण (मारवाड़) निवासी को भी धन्यवाद देता हूं कि जिन्होंने इसके प्रकाशन का कुल व्यय प्रदान किया है । हमें आशा है कि आप इसही प्रकार योग्य सहायता देते रहेंगे और अन्य महानुभाव भी आपका अनुकरण करेंगे।
विनीतकुँवर मोतीलाल रांका,
ऑनरेरी प्रवन्धका जैन पुस्तक प्रकाशक कार्यालय, ब्यावर,
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'जैन पुस्तक प्रकाशक कार्यालय व्यावर द्वारा प्रकाशित पुस्तकें.
(1) भावक धर्म दर्पण १ प्रति । ५ प्रति १) (२) शलि रक्षा प्रथम भाग एक प्रति ॥ ३५ प्रति १३ (३) सुदर्शन सेठ चरित्र एक प्रति ) ११ प्रति ११ ) (४) जम्बु गुण रख माला (श्रावक जेठमलजी चौरड़िया द्वारा रचित ) एक प्रति = १५ प्रति ५)
(५) नारी धर्म निरूपण एक प्रति - (६) जैन शिक्षण पाठसाला एक प्रति ) : ( शीघ्र छपेगा )
१२ प्रति १) ११ प्रति १ 1 )
शतावधारी पंडित मुनि श्री रतचन्द्रजी कृत पुस्तकें. (१) कर्त्तव्य-कौमुदि प्रथम ग्रन्थ मूल भावार्थ राहित इस लोक का कर्तव्य कर्म बताने वाला मूल्य केवल ॥ )
(२) रत्नगद्य माला भाग : मूल्य 11 ) जिल ले सुनि श्री के निबंधों का संग्रह है.
(३) भावना शतक आदि.
(1) सामायक रहस्य मूल्य एक प्रति 1 ) ११ प्रति २ ॥ ) (२) श्रार्दिनाथ चरित्र [ शेखर चरित्र ] टैंड दोई पर मूल्य १ असि = ) १५ प्रति ५ )
अन्य कई उपयोगी पुस्तके तयार हो रही है ।
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जैन शिक्षण पाठमाल
Preekaar पाठ १ला. नीतिबोध । १ झूठ कभी नहीं बोलना, बोलकर बद
लना नहीं. २ झूठे खत पत्र नहीं लिखना. ३ खोटा नामा लिखकर या खोटे हिसाब __'गिनकर किसी को छेतरना नहीं. . ४ किसी की थापन ओलवना नहीं: ५ झूठी गवाही नहीं देना, व झूठे सोगंद
नहीं खाना. ६ किसी को कुबुद्धि या खोटी सलाह नहीं
देना. ७ ब्यापार में किसी को कमती नहीं देना ___ और अधिक नहीं लेना. ८ व्यापार में एक चीज बता कर दूसरी
नहीं देना. .. ९ नौल माप में फेर फार नहीं रखना
यानि सरकार वा कमेटी ने मुकर्रर किये
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( २ )
हुए तोल माप में न्यूनाधिकता नहीं
रखना..
१० व्यापार में अच्छी चीज के साथ हल्की चीज मिला नहीं देना.
१ बेचने की चीजों में धूल भूसा रेत चरवी आदि चीजें नहीं मिलाना. :
१२ चोरी नहीं करना और चोरी का माल नहीं खरीदना.
२३ चोर, कलाल, कसाई, वेश्या आदि हिंसक और दुष्ट मनुष्यों के साथ लेन देन का व्यवहार नहीं करना. १४ लोक निंद्य रोजगार नहीं करना और ऐसे रोजगार की दलाली भी नहीं करना. २५ विश्वासघात और ठगबाजी नहीं करना. १६ किसी के दाम व्याज लेकर नियत
"
नहीं बिगाड़ना व धर्मादा खाते निकाला
हुआ द्रव्य घर में नहीं कपरना और
·
मुत दिये विना घर में भी नहीं रखना. १७ दारण चोरी आदि राज्य विरुद्धः कर्म नहीं करना.
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( ३ )
१८ कन्या विक्रय, वृद्ध विवाह, वाल लग्न करना कराना नहीं.
पाठ २रा. सदाचार.
१ नीच मनुष्यों की संगत नहीं करना मगर अच्छे मनुष्यों का सहवास रखना. २ किसी को दुःख नहीं देना मगर दुःखी मनुष्यों को यथा शक्ति सहायता दे कर उनके दुःख दूर करना.
३ सलाह पूंछने आवे उसको सच्चे हृदय से सच्ची सलाह देना.
४ स्वधर्मी बन्धुओं की सेवा भक्ति करमा रास्ते में या घर में जहां कहीं स्वधर्मी मिले वहां " जयजिनेन्द्र " कह उन
का सत्कार करना.
५ हरदम न्यायका पक्ष लेना मगर अन्याय के पक्ष में कभी नहीं मिलना, पंच में शामिल होना पड़े तो अन्याय नहीं
करना.
६ अपकार करने वाले पर भी उपकार करना.
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७ किसी भी कार्य के आरंभ में नवकार - मंत्र का स्मरण करना. ८ लुच्चे, लपाड़, नातिस्क और भ्रष्ट मनुष्य
को घर में नहीं घुसने देना. ९ अपने आश्रित जनों की, हरदम खवर
लेना और अनीति के मार्ग में जाने __ हुए या खोटी संगतिसे उनको रोकना. १० द्रव्य होये तो लोभत्ति से उसका सं'चर्य न करते हुए उदारता रखना
अच्छीर संस्थाएं स्थापित करना अथवा 'उसमें मदद देना.. ११ आश्रित जानवरों की बराबर सम्हाल
लेना, पांजरापोल जैसी संस्थाओं में खुद जाकर देखभाल करना धर्म. दलाली
करने से भी बहुत लाभ मिलता है. १२ नाटक चेटक या मोज शोख में पैसे का । दुव्यय न करते हुए कर कंसर करना .. और वचाये हुए धन का अच्छे मार्ग.
में व्यय करना.
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१३ पर स्त्री की पन में भी इच्छा नहीं
करना स्वस्त्री के साथ. मी विषय वासना नहीं रखना पर्वणी तिथियों में
ब्रह्मचर्य पालना. १४ धर्म की बड़ी तिथियों में यथा.शक्ति
दान, शीयल, तप करना दान में भी
ज्ञान दान को प्रथम स्थान देना. १५ वरसी तप या तपस्या के उजमणे में
फजुल खर्च न करतेहुए पुस्तकादि की प्रभावना करना अथवा अच्छी संस्था
यो में दान देना. १६ कमाई में से कुछ हिस्सा शुभ खाते में
निकालना और उसका सदुपयोग भी
शीघ्र कर डालना.. पाठ ३रा. व्यसन का त्याग.. ? जुवा नहीं खेलना और जुवा खेलने ___ वाले की सोवत नहीं करना. . २ दारू, ताड़ी, मांस, मच्छी का उपयोग
नहीं करना.
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..
करना.
३ वेश्यागमन या परस्त्रीगमन नहीं करना. ४ शिकार नहीं खेलना, और पशुओं को . लड़ाने.का. शोक नहीं रखना...। ५ अफीम, भांग, गांजा, चरस, कोकेन श्रा• दि केफी पदार्थों का व्यसन नहीं करना. ६ हुक्का, वीड़ी, चिलम, चुरट, सिगरेट
आदि धूम्रपान नहीं करना. . ७ तम्बाकु खाने या सूंघने का व्यसन नहीं ८ होटल आदि में जिमने को चाह टोफी ___ न लेने को जाना. . ह चाह पीने का व्यसन नहीं करना. १० सोडा, लेमोनेट, विस्कीट आदि भ्रष्ट
कारक चीजोंका इस्तमालशौक निमित्त
नहीं करनाः ११ तायफों का नाच कराना नहीं और
नाच देखने को भी नहीं जाना.. १२ पासा तास आदि खेलने काशौक नहीं
रखना.
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(७)
१३ वारुदखाना नहीं छोडना फ़टाकडादर __ गोला आदि छोड़ने का शौक नहीं
रखना. १४ गाड़ी घोड़े दौड़ाने का शौक नहीं रखना. पाठ ४था. भगवान की पहिचान. १ जिसको राग द्वेष न होवे सो भगवान. २ जिसको अज्ञान न होवे सो भगवान. .३ जिसको क्रोध न होवे सो भगवाम. ४ जिसको मद अहंकार न होवे सो भगवान. ५ जिसको मान-अभिमान न होवे सो
भगवान. ६ जिसको लोभ न होवे सो भगवान. ७ जिसको माया कपट न होवे सो भगवान जिसको रति-पाप पर प्रीति न होवे सो - भगवान.
जिसको भरति धर्म पर अप्रीति न होवे • सो भगवान. . १० जिसको निद्रा न होवे सो भगवान. ११ निसको शोक दिलगीरी न होवे सो
भगवान.
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(८) १२:जिसके असत्य वचन न होवे सो भगवान. १३ जिसको सर्वथा ब्रह्मचर्य होवेसो भगवान. १४ जिसको मत्सर ईर्ष्या न होवे सो भगवान. १५ जिसको सात भय में से कोई भी भय
न होवें सो भगवानः .... १६ जो सर्व जीवों को अपने समान गिने
' सो भगवान. .. :: .... १७ जिसको किसी के साथ स्नेहबंधन न
". होवें सो भगवान. . . . .: :: : : १८ जिसको जगतके सर्व जीवों पर करुणा
होवे सो भगवान. १६ जिसको तीन काल का ज्ञान होवे सो
भगवान २० जिसको वस्त्राभूषण, खानपान, फल · फूल भोगबिलास आदि कोई भी
विषय की इच्छा न होवे सो.भगवान, २१ जिसने शब्द, रूप, रस, गन्धं और स्पर्श . इन पांचों विषयों का परित्याग किया सो भगवान
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(६) पाठ पूवा. गुरु की पहचानं.. १ कोई भी प्राणी की हिंसा न करे सोगुरु, २ कभी झूठ न बोले सो गुरु." ३ मालिक की रजा सिवाय कोई भी चीज
न लेवे सो गुरु. ४ स्त्री का संसर्ग न करें और ब्रह्मचर्य
पाले सो गुरु. ५ धन दौलत, घरबार, क्षेत्र बाड़ी, गांव गरास, वाग वगीचे, आसन, वाहन, आदि किसी प्रकार का परिग्रह न रख सो गुरु. ६ रात्रि भोजन न करे सो गुरु, . ७ वाहन पर बैठे नहीं सो गुरु., ८ किसी को भाररुप न होवे सो गुरु. है किसी को भय वतलाव नहीं और कु__मार्ग में दोड़े नहीं सो गुरु. १० सांसारिक 'वाते और सांसारिक खटपट
करे नहीं सो गुरु. ... . ११ मोह, माया, ममता रखे नहीं सो गुरु. . १२ क्लेश, कंकास करे करावे नहीं सो गुरु.
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(१०) १३ शांति, समाधि उत्पन्न करे सो गुरुः १४ कठोर, कर्कश, मर्मवेधक शब्द वोले,नहीं
। सो गुरु. . . . . . . . १५.देश, गांव, नगर, उपाश्रय या किसी भी
मकान का प्रतिबंध रखे नहीं सो गुरु. १६ आप तरे और अन्य को तारें सो गुरु. १७ निःस्वार्थवृत्ति से हितोपदेश देवे सो गुरु. १८ संयम, तप, ज्ञान, ध्यान और जीवन
निर्वाह के सिवाय अन्य कोई भी कार्य
करे नहीं सो गुरु. :: १६ दिन में चाहिये उतना अन्न, जल और
पहनने को चाहिये उतने वस्त्र तथा ज्ञान के साधन के अतिरिक्त कोई भी चीज
का संग्रह न करे.सो.गुरु.. २० देश विदेश में पैर से चल कर विहार - करे सो गुरु.. ... ... २१ सत्य कहने में किसी की भी. परवा न ____करे सो गुरु. ... . , ... :२२ किसी भी समय दीनतान सेने सो गुरु, २३ सदा आत्मानंदी रहें सो गुरु.
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(११) पाठ ठा. धर्म की पहचान। १ किसी भी प्राणी को दुःख नहीं देना
उसका नाम धर्म । . २ सत्य बोलना सो धर्म ३ किसी की वस्तु विना आज्ञा नहीं लेना
सो धर्मः । ४ ब्रह्मचर्य पालन करना सो धर्मः ५ परिग्रह का त्याग करना सो धर्म. ६ शिष्ट पुरुषों को विनय करना सो धर्म. ७ सभ्यता रखना सो धर्म ८ क्रोध न करके क्षमा रखना सो धर्म. ६ लोभ न करके संतोष रखना सो धर्म. १० सरलता (ऋजुता) रखना सो धर्म. ११ कोमलता (मृदुता) रखना सो धर्म. १२ इन्द्रियों को वश में रखना सो धर्म. १३ सुपात्र को दान देना सो धर्मः। १४ यथाशक्ति तप करना सो धर्मः १५ चपलता दूर करके मनको स्थिर करना
सो धर्म.
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(१२)
१६ शास्त्र की आज्ञाका पालन करना सोधर्म. १७ सत्पुरुषों का संसर्ग करना सो धर्म. १८ गुरुकी भक्ति बहुमान करना सौ धर्म. १६ गरीवों के उपर अनुकंपा लाना सोधर्म. २० सर्वका हित चिंतन करना और दूसरे
के सुख में सुखी होना सो. धर्म... ' २१ आप.दुःख सहन करके दूसरे को सुख
देना सो धर्म. . २२ शास्त्रों का अध्यन करना और उन पर
श्रद्धा रखना सो धर्म. २३-बड़ों की शुद्ध आज्ञा पालन करना सोधर्म. २४ दूसरों का शुभ कार्य अपना ही समझ
कर करना, अहंभाव अथवा स्वार्थवृत्ति
न रखना सो धर्म. २५ अपनी आमदनी में से कुछ हिस्सा ध
मादे में निकाल कर उसका धार्मिक
कार्यों में सद्व्यय कर डालनासो धर्म. २६ देश, समाज और धर्म की सेवा बजाना
सो धर्म.
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(१३.) २७ मन, वचन और कायाकी शुद्ध परिणति
रखना सो धर्मः . पाठ ७वां. गुरु भक्ति । । । १ किसी भी जगह पर गुरु मिले तो खड़े
होकर वंदना करना. . : २ गुरु वाहर गांव से आते होवें उस स'. मय चाहे जितना कार्य होवे छोड़ कर
सामने जाना, और विहार · करे तव
पहुंचाने को जाना. . . . . . . ३ रास्ते में चलते हुए गुरु से आगे, जोड़े में और बहुत करीव पीछे रहकर चल ना या खड़े रहना नहीं किन्तु थोड़ा
अंतर रख कर पीछे २ चलना. ४ गुरु बोलते होवे जब बीच में नहीं
बोलना. ५ गुरु वुलावे तो सत्पर खड़े होकर जवाब
देना पर सुनी अणसुनी करना नहीं. ६ गुरु के सामने कठोर और तुच्छ भाषा
में नहीं बोलना. ..
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(१४)
७ गुरु जो कुछ आदेश करे उसका आदर
पूर्वक स्वीकार करना. . ८ गुरु को अवर्णवाद नहीं बोलना, और
कोई चोलते हो तो उसको रोकना. ९ गुरु को रोगादिक की तकलीफ होवे
उसका यथाशक्य उपचार करना. १० गुरु को ज्ञानादिक के योग्य साधन
प्राप्त कर देना. ११ गुरु को ज्ञानाभ्यास में अंतराय नहीं
डालना. १२ गुरु का बहुमान करके उनके गुणों को
प्रकाश में लाना.. १३ गुरु अपने आसन से उठकर अन्यत्र
जावे अथवा वहार में अपने आसन पर आवे जब खड़े हो जाना मगर बैठे
नहीं रहना. १४ गुरु की वैयावच्च सेवाभाक्त योग्य रीति
से करना. १५ गुरु की कल्पती जरूरत की चीज के
वेराने में संकुचित मन नहीं रखना.
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(१५) १६ साधु को जरूरत की चीजें असुझती
नहीं रखना, .. • पाठ ८वां धर्मस्थान प्रवेश.
जहां धर्मक्रिया की जाती है और धर्म गुरु ठहरते हैं उसे धर्म स्थान-उपाश्रय कह न हैं उसकी मर्यादाके लिये निम्न लिखित नियमों का पालन करना चाहिये:- . १ शरीर या वनों के उपर खून, राध,
विष्टा, या कोई भी अशुचिका का दाम होवे या शरीर के किसी अवयव में से रसी निकलती होवे तो उपाश्रयमें नहीं
आना. २ शरीर के अवयव दिखे ऐसे बहुत बा
रीक वस्त्र पहन कर नहीं आना. ३ गरबड़ मचावे या अशुचि कर जावे ऐसे छोटे बच्चों को खेलाने के लिये
साथ में नहीं लाना. ४ सचित्त वस्तु फल, फूल, शाक, भाजी
हरी, बनस्पति, कच्चापानी, दाने,
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(१६) साबूत सोपारी, इलायची, आदि चीजें
साथ में नहीं लाना... . ५.धर्मस्थानः की मर्यादा का लोप होवे ऐसी गुन्हाहित ( अपराधी) स्थिति में
नहीं आना, '. ... ६ बहार से आकर. उपाश्रय की हद्द में
पिशाव नहीं करना. .७ उपाश्रय के भीतर या बहार आनेजाने __ के रास्ते पर लीट या 'बलगम नहीं
" डालना. . . . . ८ एक पने के वस्त्र का उत्तरासन किये · नहीं आना . . . ह धर्मस्थान में बैठने के होल में जुते पहन ____ कर नहीं आना । . १० चींटी आदि जन्तु चढ़ जावे ऐसे पदार्थ
लेकर नहीं आना. ११ रजस्वला स्त्रियों को अपवित्रता हो ___वहां तक नहीं आना चाहिये, . १२. उपाश्रय के द्वार में प्रवेश करते समय
"निसही" शब्द का उच्चारण करना'
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करना..
..
.
"
(१७) १३ भीतर आंकर इरियावही का काउसग्ग पाठ वां धर्म स्थान की मर्यादा. १ सांसारिक कथाएं, नोवेल, शृंगारिक
कविताएं या विभत्स पुस्तकें धर्मस्थान में लाना नहीं व पढ़ना नहीं.. . २ धर्मस्थान में धार्मिक और नैतिक वि
पय के अलावा अन्य मासिक या न्यू• अपेपर नहीं पढना. ३ धर्मस्थानमें ज्ञाति की या गांव की पंचा. , यतें नहीं करना. ४ धर्मस्थान में सांसारिक रोजगार या
तत्सम्बन्धी बात करना नहीं. ५ धर्मस्थान में मंत्र जंत्र या ज्योतिष के . फलाफल की या वस्तुओं के भाव ।
ताव की बातें नहीं करना. ' ६ धर्मस्थान में वैद्य का रोजगार या उस
सम्बन्धी वातें नहीं करना. ७ धर्मस्थानमें जुआ या सौदा सहा करना
नहीं.
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(१८.) .धर्मस्थान में बाजे नहीं वजाना और ___ गान नाच कराना नहीं.. ....
९ धर्मस्थान में वेवीशाल, विवाह आदि .. कार्य नहीं करना. . . १० धर्मस्थान में क्रय विक्रय अथवा लेन
देन सम्बन्धी व्यवहार नहीं करना.. ११ धर्मस्थान में घर सम्बन्धी तथा व्यापार , 'सम्वन्धी कोई भी कार्य नहीं करना. . १२. धर्मस्थान में तास, चौपड़, गिल्लीदंडा
'बेटबॉल आदि खेलना नहीं. . १३ धर्मस्थान में जिमणवार, मिजमानी, - 'चापार्टी आदि करना करांना नहीं. १४. धर्मस्थान में स्नान मंजन सिर गुंथन
हजामतं आदि शरीर शुश्रूषा के कार्य
करना नहीं. . . . . .:. १५ धर्मस्थान में भरत, गुंथन, सीना आदि
सांसारिक कार्य नहीं करना. १६.धर्मस्थान में तम्बाकू, पान, सुपारी,
आदि नहीं खाना.
३
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२७:धर्मस्थानमें बीड़ी, चलम, गांजा, सिग. . रेट, हुक्का, आदि धूम्रपान नहीं करना. १८ धर्मस्थान में ठंडा पानी; चाह नास्ता, . फलफूल आदि खाना नहीं. १६ धर्मस्थानमें जोखमवाली कोई भी चीज
नहीं रखना. २० धर्मस्थान में नँ, खटमल, आदि क्षुद्र
माणी डालना नहीं. २१ धर्मस्थान में बलगम, लीट, आदि वस्त्र · में डालना नहीं तथा पैर, जमीन या
भीत के उपर लगानां नहीं. , २२ धर्मस्थान में मलीन मुंहपत्ति या कपड़े
के टुकड़े रखना नहीं. २३ धर्मस्थान में गोवर आदि से खरडापे
हुए पैर जमीन पर घिसकर धर्मस्थान
की पवित्र जमीन.विगाड़ना नहीं. पाठ.१०वां धर्मस्थान में भाषाकी
___ मयोदा. : ... .१.धर्मस्थान में क्लेश कंकास होके और
कपाय बढे ऐसी भाषा नहीं बोलना. .
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(२०)
२ धर्मस्थान में हूंकारे, तूंकारे विभत्स
शब्द से अपमान वाचक शब्द से कि
सी को नहीं बुलाना. ३ धर्मस्थान अविनयी शब्द का उच्चार नहीं
करना तथा किसाको गाली नहीं देना. ४ धर्मस्थान में विषवाद उत्पन्न हो। उस
तरह वाद नहीं करना. ५ धर्मस्थान में गर्वयुक्त शब्द नहीं बोलना. ६ धर्मस्थानमें कठोर, कर्कश, परको पीडा कारी मर्मभेदक तथा दूसरों के रहस्य प्रकाशक शब्द बोलना नहीं और किसी को भय उत्पन्न होवे ऐसे वचन
नहीं बोलना. ७ धर्मस्थान में स्त्रीकथा, भत्तकथा, देश
कथा और राजकया श्रादि किसी तरह ..की विकया फजूल वातें नहीं करना. ८ धर्मस्थान में माया कपट.से प्रपंच युक्त - भाषण नहीं करना. है धर्मस्थान में हांसी मश्करी या किसी " की दिल्लगी नहीं करना. : .
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(२१): १० धर्मस्थान में सावध अप्रिय और अस
त्य भाषण नहीं करना...। ११ धर्मस्थान में काने को काना, अन्धे को
अंधा चोर को चोर तथा किसी प्रकार के दूषण वाले को दूषणयुक्त विशेषण
से नहीं बुलाना.. १२ धर्मस्थान में शृंगारी गायन या शृंगारी
बातें नहीं करना. १३ धर्मस्थान फारसी सांकेतिक या दूसरे
को शंका उत्पन्न होवे ऐसे शब्द नहीं
वोलना.' १४ धर्मस्थान में स्त्री को पुरुष के साथ व
पुरुष को स्त्री के साथ एकांत में वार्ता
लाप नहीं करना चाहिये. . १५ धर्मस्थान में राज्य विरुद्ध गिनी जावे
ऐसी बातें या भाषण नहीं करना. १६ धर्मस्थान में किसी की भी निन्दा कुंथली • • नहीं करना. ..... १७ धर्मस्थान में सिवाय जयजिनेन्द्र के जु.': हार. रामराम; सलामआदि व्यवहारिक
आदर सत्कार के शब्द नहीं बोलना.
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(२२) पाठ ११वां धर्मसभामें प्रवेश और . वंदन विधी... ____ जहां धर्मगुरु उपदेश देवें और श्रोता
जन सुनने.को वैठे उसे धर्म सभा कहते हैं, • उसकी मर्यादा के लिये निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिये. ..
१ गुरु के उपर दृष्टि पड़ते ही दोनों हाथ • मस्तक को लगाना.'
२ विना संकोचे खुलते या उड़ते हुए वस्त्रों __ से सभा में दाखिल नहीं होना. ३ नीची दृष्टिं रखकर यत्न पूर्वकं दाखिल
होना. . . . . ४ किसी की ठोकर न लगे और धर्मोपक
रण पैर न आवे उस भांति चलना. ६ गुरु के आसन से ढाई हाथ दूर रहकर
वंदना करना. . ६. पांचों अंग नमा कर तिखुत्ता के पाद : का उच्चारण करते हुए तीन बार उद । बैठ कर वंदना करना.
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(२३.),
७ वंदना करते. समय हाथ पैर जिस जमीन पर रखने के हों उस जमीन को. दृष्टि से देखकर रजोहरण, गुच्छा, और
वस्त्र के पल्ले से पुंछना. - वंदना करके धीरे से, कोमल, हाथ से.
गुरु के चरणों की रज लेकर मस्तक पर लगाना और गुरु की. सुखंशाता
पूंछना. ६ मनुष्यों की गिरदी, होते तो चरणरज
लेने को धक्का धक्की नहीं करना. १० वारीससे भिजे हुए हाथ पैर या. वख
जवतक सूक नहीं जावे तबतक व्रती और गुरु के चरण का स्पर्श नहीं
करना. ११ मनुष्यों से जगह चीकार भर गई हो
और चलने को जगह न हो तो लोगों को दबाकर भीतर नहीं घुसना पर) दूर से ही वंदना करके उचित स्थान पर बैठना.
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(२४) १२ त्रियों को खियों की और पुरुषों को
पुरुषों की सभा में प्रवेश करने का जो द्वार होवे उसी द्वार से और उसी मार्ग
से प्रवेश करनाः .. पाठ १२वां संभा में बैठने के नियम.
१ मनुष्यों के आने के मार्ग में नहीं बैठना. २ स्त्रियों की सभाके सामने मुख रखकर
नहीं बैठना. ३ स्त्री सभा और पुरुष सभा के बीच में __ थोड़ा भी अंतर रख कर बैठना. ४ बैठनेका स्थल दृष्टिसे देखे विना यारजो
हरण गुच्छासे पुंछ विना नहीं बैठना. .५ वेटका (आसन) यतनासे विछाये बिना
नहीं बैठना. ६ सामायिक या संवर कोई भी व्रत लेकर
वैठना. :: ७ अपनी हैसीयत के माफिक आगे या । पीछे, गुरु के सन्मुख दृष्टि रख कर बैठना. ८ पाट भींत या खंभे के सहारे नहीं बैठना.
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(२५) ६ ख या भुजा से पलाठी चांधकर नहीं
वैठना. '१० लंबे पैर पसार कर नहीं बैठना..
११ पैर पर पैर चढा कर नहीं बैठना. १२ वारी वगैरह में उंचे चढ कर नहीं बैठना. १३ गुरु से उंचे आसन पर नहीं बैठना. १४ गुरु को भीड़ कर नहीं बैठना. १५ पंक्ति में बैठना मगर इधर उधर ज्यों त्यों
नहीं बैठना. १६ गद्दी तकीये बिछाकर नहीं बैठना. १७ वैठने की जगह के लिये तकरार नहीं ___ करना जहां स्थान मिले वहां बैठ जाना. १८ गुरु के आसन पर बैठना नहीं तथा
गुरु के धर्मोपकरणको पैर लगा कर । भाशातना नहीं करना. पाठ १३वां व्याख्यान श्रवण करने
की विधि. १ न्याख्यानदाता व्याख्यान देने को आ
वें और व्याख्यान देकर जावे उस • . समय श्रोताओं को उठ कर खड़े होना.
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२.व्याख्यान के प्रारंभ औरः समाप्ति के ... समय भी खड़े होना. . .. ..
३ व्याख्यान समाप्त होवे जब कुछ भी .. व्रत नियम करना..... : ... .
४ व्याख्यान के विचमें बोलचाल नहीं . करना ५ पच्चखाण लेना हो तो. नियत समय
पर एक ही साथ पच्चखाण ले लेना .. • पर वार, वार व्याख्यान में विघ्न नहीं, ....डालना......: ....... ... ... .
६ व्याख्यान के अंदर किसी के साथ ..वातालाप नहीं करना. ..... . .७.व्याख्यान के अंदर उठ बैठ नहीं करना. .८ व्याख्यान के अंदर स्त्रियों के प्रति वि.
कार दृष्टि से नहीं देखना ६ व्याख्यान के अंदर इधर उधर दृष्टि ... नहीं फिराना......:.: . . १० व्याख्यान के अन्दर आलस्य मरोड़ना
नहीं सोना नहीं और झोके नहीं खानाः .
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(२७) ११ व्याख्यान के अन्दर उंचस्विर से सा
मायिक के पाठ नहीं बोलना. , १२ व्याख्यान के अन्दर नवकार वाली अनु... पूर्वी गिनना नहीं तथा कितावें पढना नहीं. १३ व्याख्यानके अन्दर स्वाध्याय:या, पाठ फरना-नहीं.
. १४ व्याख्यान के अन्दर श्रवण के सिवाय
अल्प कोई भी क्रिया नहीं करना. १५ व्याख्यान के अन्दर चालू विषय के
अतिरिक्त उटपटांग प्रश्न पूंछनी नहीं. १६ व्याख्यान के अंदर कारण विना उठ
कर चलते नहीं बनना. . १७ व्याख्यान के अंदर दूसरों को उपदेश
नहीं देना अथवा व्याख्यान का विपय खुद जानते हों तो उसके विषय
में आगे से दूसरों को नहीं कहना. १८ व्याख्यान के विषय की अवंगणना
नहीं करना. .... १९ वक्ता की गलती होवे तो भी सभासमक्ष
उसको अपमानित कर खष्ट नहीं करना.
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(२८) २० व्याख्यान श्रवण करने में छोटे बड़े साधु ___ या संघाडा पर संघाडा की भेद भावना
। नहीं रखना, निष्पक्षपात से श्रवण करना. २१ सभा में के कोई भी सभासद के उपर
. वैरभाव या द्वेष भाव रखना नहीं २२ मन की वृत्तियों को एकाग्र कर आदि • से अंततक एक चित्त से सच्चे दिल .
से श्रवण करना. २३ सामायिक व्रत गुरु की आज्ञा से कर
स्वतः बांध लेना, मगर व्याख्यान में । “अंतराय नहीं डालना.
पाठ १४वा ज्ञान मर्यादा. १ धर्मपुस्तक को अपने आसन से नीचे
आसन पर रखना नहीं. . २ धर्मपुस्तक को पैर नहीं लगाना तथा
उसके उपर सोना या बैठना नहीं. ३ धर्मपुस्तक को जमीन पर यों ही नहीं रख छोड़ना, परंतु टवणी के उपर र खना अथवा पाटली के साथ अच्छे बंधने में बांध रखना.
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(२६) ४ धर्मपुस्तक के सामने पैर लम्बे नहीं __करना, तथा उसके तरफ पीठ नहीं देना. . ५ धर्मपुस्तक को धुंकवाली उंगली नहीं
लगाना. ६ नियत समय पर धर्मपुस्तकों का पड़ि
लेहण करना. . .. . ७ किसी के भी पुस्तक को बिगाड़ना नहीं
और उसका नाश नहीं करना. ८ ज्ञानी पुरुष की अवहेलना, निंदा या ,
अपमान नहीं करना. ९ किसी को भी ज्ञान प्राप्त करने में अंत
राय नहीं डालना. १० ज्ञान का मिथ्या दंभ-आडवर नहीं करना. ११ अकाल और असज्झाय में सूत्रका उ- . __च्चार नहीं करना. .. १२ ह्रस्व का दीर्घ और दीर्घ का ह्रस्व आदि __अशुद्ध उच्चार नहीं करना. १३ सूत्रवाचन के प्रमाणमें उपधान तप करना. १४ गुरुगम के विना सूत्रका उपदेश देने को
तत्पर नहीं होना.
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(६३०) १५ अगम्य विषयमें मिथ्या कल्पना नहीं . करना. '.. , , १६. उत्सूत्र भापण नहीं करना, तथा शंका
होवे तो उसका समाधान करना मगर ' शंका नहीं वेदना. : . १७ सोते २ अथवा करवटें बदलते हुए नहीं
... पटना.
१८ गुरुको वंदना किये विना प्रश्न नहीं • पूछना और वाचणी भी नहीं लेना.. १९ गुरुका उपकार नहीं भूलना, मगरविद्या
. देने वाले का सत्कार वहुमान करना. २० शास्त्र के पवित्र वाक्य अनादर पूर्वक
, जहां तहां नहीं उच्चारना, , .. २१ योग्यता से परे शास्त्रीय वांचन करना
कराना नहीं., २२ खुल्ले मुंह और दीपक के उजाले में
शान नहीं पढ़ना २३. अपवित्र स्थान में धर्मपुस्तक नहीं रखना, २४ व्यवहारिक ज्ञानकी इमारत बनाने को . धार्मिक ज्ञानकी नीव शुरू से ही डालना,
६
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(३१.)
पाठ १५वी प्रसन्भाय की समझ : जिसके योग में पवित्र शास्त्र का उच्चा रण न हो सके उसे असझाय कहते हैं वो इस प्रकार हैं.
१. अस्थि, (हड्डी) मांस, रुधिर, विष्टा ' और पंचेन्द्रिय का क्लेवर जिस मकान की हद में पड़ा हो उस हद्द में शास्त्र नहीं पढना ( असज्झाय ).
२ राजा अथवा बड़े माननीय मनुष्य का ' मृत्यु होजावे तव सज्झाय.
1
३ महान युद्ध होता हो तब उसकी हद में असझाय
४ वड़ा तारा गिरे या उल्कापात हो तव
असज्झाय.
५ चन्द्र सूर्य का ग्रहण रहे वहां तक अस ज्झाय.
"
६ दिशाएं धुंधुली हो जावे तब असंज्झाय ७ स्वाति नक्षत्र के पीछे और आद्रा नक्षत्रके पहिले कढ़ाका, गाजवीज, छींटे. बारीस होवे तो उतने समय तक: सन्काय
· *"
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(३२)
८ धूमसे द्वार और तुषार पड़े वहीं तक - अंसज्झाय. ६ प्रचंड वायु से रनोदृष्टि होवे वहां तक
असज्झाय. १० भूतादिक की चेष्टा होवे तव असज़्झाय ११ शुक्लपन की दूज का चन्द्र उदय होने
के बाद दो घड़ी पर्यंत असज्झाय. १२ अषाढ शुदि १५ श्रावण बदी १
भादवा शुदी १५ आश्विन वदी १ कार्तिक शुदी १५ मार्गशीर्ष वदी १ चैत्र शुदी १५ वैसाख बदी इन आठ दिन की सारे दिन की
असज्झाय. १३ रोजाना सुबह शाम संध्या की दो
घड़ी मध्य रात्रि और मध्याहन की दो घड़ी इस भांति एक दिन में आठ
घड़ी अकास असज्झाय. . . पाठ १६वां अभक्ष्य का त्याग. १ किसी तरह की मदिरा और मांस का • इस्तेमाल नहीं करना.
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( ३३ )
२ मधु और मक्खन नहीं खाना. ३ काँदा, लसन, आदि कन्दमूल नहीं
खाना.
४ वड़, पीपल, उंबर, आदि वृक्ष के फल नहीं, खाना.
५ ताड़फल पंडोल और देखने में अच्छी नहीं ऐसी चीजें नहीं खाना.
६ वारिस के करे नहीं खाना.
७ सोमल, वनाग, अफीम आदि विष भक्षण नहीं करना.
८ रात्रि भोजन नहीं करना.
., ९ वोल आचार नहीं खाना.
१० अपरिचित फलफूल या वनस्पति नहीं
खाना.
११ विगड़ा हुआ नाज, मिठाई, दूध, फल,
घी आदि नहीं खाना.
१२' ठान्न पानी नहीं खाना:
१३. मैदा और सूजी की बनी हुई चीजें नहीं
खाना.
"
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( ३४ )
१४ विधि से पकाये हुए फल शाकादि 1 नहीं, खाना.
१५ कोडलीवर आईल आदि भ्रष्ट दवाएं नहीं खाना. पाठ १७वां सामायिक की विधि.
१. जहां तक हो प्रभात में नहीं तो जब
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एक घंटे की निवृत्ति मिले तब पवित्र
"
शरीर से पवित्र स्थान में सामायिक करना. :
२ सामायिकके वस्त्र अलग रखना चाहिये एक पहनने का और एक डने का इस तरह दो खुल्ले वस्त्र सफेद और स्वच्छ रखना.
.
३ सामायिक में वनीयान, अचकन, गंजी कोट, पाटलून, टोपी, पघड़ी, मोजे, फूल की माला या कोई भी सीसारिक कपड़े पहनना नहीं.
४ स्त्रियों के लिये उपर लिखित नियम नहीं है उनको स्त्रियों का पहनांव रख
1
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(३५) ना चाहिये कपड़े साधारण और स्व
च्छ चाहिये. . . . . . ५ बैठका (आसन), गुच्छा, मुंहपत्ति,
माला और पहनने ओडने का एक २
वस्त्र ये सामायिक के उपकरण हैं. ६ उपर्युक्त छहों उपकरण मलीन या गंदे नहीं रखना क्योंकि चौमासे में उनमें फुलण होने का संभव हैं और देखने में भी बुरे मालुम होते हैं. ७ सामायिक करने वाले को प्रथम छहों
उपकरणों का पडिलेहण करना, पीछे सांसारिक वस्त्र बंदल करे सामायिक
के दो वस्त्र धारण करना. . . : - जमीन घुछ कर आसन विछाना व मुंह
पत्ति वांधना गुरु होवे तो उनको बंद ना करना न होवे तो पूर्व तथा उत्तर दिशा तरफ मुख रख कर खड़े २ या बैठे २ सामायिक के पाद उच्चारना.
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(३६) सामायिक के आठ पाठ में पहले के चार पाठ पढकर पीछे इरियावही का
काउसग्ग क्रमशः करना. १० काउसग्ग यानि काया को स्थिर रखना
हाथ पैर होंठ जीभ या आंख की पांप ण तक नहीं हिलाना; सर्व अंग स्थिर रखकर इरियावही का पाठ मन में , याद कर जाना सो कारसग्ग. ११ काउसम्ग खड़े २ करना हो तो हात
लम्व कर जया को लगा कर. हाधि नासिका के अग्र भाग पर ठहरांना वैठे वैठे करना हो पलांठी लगाकर हाथ की दोनों हथेली एक दूसरे पर रख
कर दृष्टि नासिका पर रखना. १२. "नमो अरिहंताणं" बोलकर काउसग्ग
पारना तत्पश्चात् लोगस्स का पाठ वोल कर गुरुको तीन दफे वंदन करके आज्ञा मांगनाः तत्पश्चात "करे निभंते" का पाट वोलकर जिमणा घुटना जमीन
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(३७) पर रखना और वाया घुटना खड़ा
रखकर तीन नमोत्थुणं कहना. १३. कम से कम दो घड़ी का सामायिक होता
है.एकी घडी का नहीं पर बेकी घड़ीका ___ अर्थात् २-४-६-८ घड़ी का होता है. १४ सामायिक के काल में सिवाय धर्म के ___और कोई काम नहीं करना.' १५ सामायिक के काल में धर्म पुस्तक पढ
ना, व्याख्यान श्रवण करना, संज्झाय करना, ध्यान, धरना, माला फेरना,
धर्मचर्चा, या ज्ञानचचों करना . १६ सामायिकके वचीस दोष टालकर शुद्ध
सामायिक करना. . . १७ दो घडी या चार घडी पूर्ण होने के
वाद सामायिक पारना होवे तब लोगस्स पर्यंत पूर्ववत् पढ़ जाना" करेनिभंते" के बजाय पारने की विधि का पाठ बोलना और . अंत में तीन नमोत्थुणं कहना.
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१
(३८) १८ सामायिक के कपड़े अलंग कपडे में ही
बांधना, मुंहपान यदि थूक से गीली
होजावे तो सके विना नहीं बांधना. . गीली रहने से समूच्छिम जीव उत्पन्न
होते हैं. १९ सामायिक के उपकरण मलीन हो
गये हों तो अचेत जल से साफ करना मगर कच्चे पानी से नहीं. पाठ १८वां सामायिक के ३२ ।. दोष. मनके १० दोष. १ अविवेक दोष-सामायिक का लाभ या स्वरूप समझे बिना ओघ संज्ञा से
करे सो. २ यशोवांच्छा दोप-सामायिक में यश
कीर्तिकी वांछा करे सो. ३ धन वांच्छा दोष-सामायिक में धनकी
इच्छा रखे सो. ...४ गर्व दोष-सामायिक का अभिमान
करे सो.
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(३६) ५ भय दोष-भाव विना.मात्र लोकोपवाद
के भय से करे सो... ६ निदान दोष-सामायिक के फल का
नियाणा करे सो. . . ७ संशय दोप-सामायिक के फल का
संदेह रखे सो. ८ कषाय दोष-सामायिक में क्रोध, मान, . माया, लोभ करे, सो.. . ६ अविनय दोष-सामायिक में गुर्वादिक
का द्रोह करे सो. १० अपमान दोष-सामायिक को तुच्छ समझ कर अंनादर पूर्वक करे सो..
वचन के.१० दोष. . १ कुत्सित दोष-सामायिक में कुत्सित
विभत्स वचन बोले सो. : . २ सहसा. दोष-विना विचार किये साह
सिक वचन चोले सो. .३ असदारोपण दोष-किसी के उपर अ___ सत्य आरोप रक्खे सो......
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(४०)
४ निरपेक्ष दोष-शास्त्र की अपेक्षा विना एकांतिक वचन बोले- सो.
"
..
५ संक्षेप दोष - सामायिक के पाठ संक्षेप
से अपूर्ण बोले. सो.
-६ कलह दोष - किसी के साथ क्लेश कंकास करे सो.
७ विकथा दोष - चार किस्म की विकथा 'करे सो.
= हास्य दोष- किसी की हांसी मरकरी करे सो.
4
९ शुद्ध दोष - अशुद्ध उच्चार करे अथवा
चकार मकरादि वचन बोले सो.
१० मुम्मण दोष- मक्खी की तरह वणवण करते हुए पाठ के शब्द अप्रकट रीति से बोले सो. ' काया के १२ दोष.
१ अयोग्यांसन दोष - पैर पर पैर चढ़ाकर अथवा कपड़े की पलांठी बांधकर बैठे - या अन्य कोई अयोग्य श्रासन - से बैठे सो.
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( ४१ )
२ चलासन दोष-वार वार आसन बदले या होंडा वगैरह अस्थिर आसन पर वैठे सो.
३ चला दोप - चारों ओर दृष्टि किया करे या विषयावृत्ति से स्त्रियों के तरफ देखे सो.
४ सावद्य क्रिया दोष- सामायिक में बच्चों को खिलाना, कपड़े सीना, नामा लिखना आदि सांसारिक कार्य करे सो. ५ आलंबन दोष- भीति, थंभा आदि के सहारे बैठे सो.
६ आकुंचन प्रसारण दोष- कारण विना शरीर के अवयव वार २ संकोचना ' मसारना सो.
·
•
७ आलस्य दोष- आलस्य मरोड़े, वगासां खाये, आड़े पासे सोये इत्यादि. ८. मोटन दोप- अंगुली प्रमुख मोड़ कर टचा का फोड़े सो.
६ मल दोष-पुंज बिना खाज खने अथ वा शरीर का मैल उतारे सो. '
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Y
(४१) १० विमासण दोष-गाल पर हाथ लगाकर ., सांसारिक कार्य का विमासण, शोक,
दिलगीरी करे सो. ....... ११ निद्रा दोष-डोला खाचे या निद्रा लेवे • ... सो.... १२ वैयावच्च दोष-विना कारण अंग दवा - सो. ....:.":. :::. ". पाठ १९वां पोषध का विधी.. १. सामायिक के छ: उपकरण पोषध में भी 'चल सकते हैं इसके अलावां विछाने के वास्ते तीन चदर रखना, वहभी सफेद
साधारण और स्वच्छ चाहिये । '२ प्रथम जगा पुंछ कर उपकरणों का पं.
डिलहण करना.... ३.सांसारिक वस्त्र: उतार कर धर्म के समय ... पहनने ओढ़नेके वस्त्र धारण करना स्त्रियों ... को अपना मामुली पहनाव रखना..
४ पोषा में कुछ भी खाना पीना नहीं चा:: हिये तम्बाकू भी नहीं सूंघना, चोविहारा
वास करना चाहिये.... : ..
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.: (४३)
•
५ पोषामें किसी प्रकार का शस्त्र नहीं रखन ६ पोपामें जेवर या सोने चांदीके कोई भी श्राभरण नहीं पहनना चाहिये, स्त्रियों को नहीं उतारे जा सके ऐसे गहने के लावा और आभरण नहीं रखना. ७ चंदन, विलेपन या पुष्पमाला पोषध में नहीं पहनना चाहिये. ;
८ सामायिक के माफिक मामुली दो कपड़े • पहन कर व आसन बिछाकर मुँहपत्ति बांधना गुरु के सन्मुख अथवा पूर्व उ. त्तर दिशाभिमुख खड़े रह कर सामायिक के भांति लोगस्स पर्यंत पाठ दो दफे उच्चरना.
६ वंदनपूर्वक आज्ञा लेकर गुरु के पास : अगर गुरु न होवे तो स्वतः ग्यारहवां
व्रत का शुरु का पाठ उच्चार कर पोषध बांधना, तत्पश्चात् पूर्ववत् तीन नमोत्थुणं. कहना यहां पोषध व्रत वांधने का विधी पूरा हुआ.
·
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.. १० पोषधकाल सूर्योदय से शुरु होकर दूसरे
दिन सूर्योदय होवें वहां तक आठ प्रहर
का पोपा होवे. ... ... ११ पोपामें दिनकों सोना नहीं चाहिये और
काम विना हलचल नहीं करना चाहिये. १२ सामायिकमें बतलाये हुए कार्य ही पोपा
में होसके पर दूसरा कार्य नहीं करना चाहिये..
:: . १३. शामको यो दूसरे दिन प्रातःकाल को बड़े " : श्रावक की आज्ञा लेकर प्रत्येक उपकरण
और वस्त्रों का पडिलेहण करना. . १४ सुबह शाम.दोनों वक्त प्रतिक्रमण करना. १५ पोषामें लघुनीत या बड़ीनीत का काम * : पड़े तो निबंध स्थानमें जाकर परठ
"ना: पंरठने कोजाते.'संमय श्रावस्स हि" कहना; जमीन देखकर 'अणु. जाणह" कह कर व. शक्रंद्रकी आज्ञा लेकर परठना, परंठ कर वोसिरेह, वोसिरेह कहना; फिर अंदर आते हुए
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(४५) "निसहि" शब्द कहना रात्रि के समय घहार जाने की जरूरत हो तो सिरपर वस्त्र ओढ कर जाना पर खुल्ले मस्तक
या खुल्ले शरीर नहीं जाना. १६ पोषामें वड़ीनीतिका कारण पड़े उस
वास्ते गरम जलका योग रखना अ
थवा दिन होर लाना. १७ पोपाके २१ दोप दाल कर शुद्ध पोषध
करना. १८ चलती हुई परंपरा के अनुसार ग्यारह
वां पोपधव्रत ज्यांदेसे ज्यादे एक प्रहर दिन चढे वहां तक वांध सकते हैं वाद
में दशवां व्रत हो सकता है. १९ दशवां व्रत में अन्य सर्व विधि ग्यारहवें
व्रत के माफिक है पर इतना अंतर है कि प्रथम उपवास के पच्चखाण करना, तत्पश्चात् वस्त्र और उपकरणों
की मर्यादा करना, की हुई मर्यादा से • अधिक वस्त्र या उपकरण कल्पे नहीं
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( ४६ ).
स्थल और दिशाकी भी पहले से ही मर्यादा बांधना और उस मर्यादा के वहार नहीं जाना. २० पोषा में प्रहर रात्रि जाने के बाद उंच
I
स्वरसे या बहुत जोर से नहीं बोलना.
पाठ २०वां पोपा के २१ दोष.
१ पोषाके निमित्त हजामत करावे, वस्त्र धु
L
+
"
पावे, रंगावे और शरीर शुश्रूषा करे सो दोष.
२ पोषाके अगले दिन विपय सेवे सो दोष. ३ अजीर्ण होवे उस प्रकार अधिक आहार खार में करे सो दोष.
४ विषय. विकार वढे ऐसा मादक आहार खारमें करे सो दोष.
, ५ पोषाके वस्त्र तथा उपकरण वरावर पुंछे पडिले हे नहीं सो दोष.
.* :
६ उच्चारादिक भूमिका पडिलेहरण किये विना परठवे सो दोष.
७ पोषधत्रत विधि से बांधे पारे सो दोष,
6
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(४७) प्रमाण से अधिक बस्त्र रखे सो दोष. ६ धर्मकी हेलना होवे ऐसे गंदे, अपवित्र या
रंग वेरंगी वस्त्र रखे सों दोष. . १० पुंछे पडिलेहे विना हालचाल करे सो दोप. ११ सो हात से उपरांत जाने के बाद इरि- यावही न पडिक्कमे तो दोष. १२ निंद्रा से मुक्त होने के वाद चार लोगस्स
व पहले समणसूत्र (इच्छामि पडिकमि
उंपगामसिज्झाए निगामसिंज्झाए जाब • तस्समिच्छामि दुक्कडं) का काउसग्ग . .. न करे तो दोपं. . . . . .. १३ पडिलेहण किये वाद इरियावहि व ती
सरे समणसूत्र (पडिकमामि चउकासं
सज्झायस्स इत्यादि) का काउसग्ग-न ... करे तो दोष. १४ शरीर का मैल उतारे या पुछे विना ___ खाज खने तो दोष. १५ विकथा या पर निंदा करे सो दोष. .१६ कलह या मश्करी करें तो दोष. .
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(४८) १७ अव्रती को आदर देवे और आसनका
आमंत्रण करे तो दोष. १८ भाषासमिति रखे विना वोले सो दोष. १६ दो घड़ी व्यतीत होने के पेश्तर स्त्री के
आसन पर (जिस जगह स्त्री बैठी हो उस जगह पर) पुरुष और पुरुष के
आसन पर स्त्री वैठे तो दोष. . २० पुरुष स्त्री की ओर व स्त्री पुरुष की
ओर विषय दृष्टि से देख,तो दोप. २१ अपनी मलकियत के पोपाके उपकरण
के सिवाय अन्य चीजें अव्रतीकी आज्ञा , लिये विना लेवे या अवती के पास
कोई भी चीज मंगवावे तो दोष. पाठ २१वां श्रावक के २१ गुण, १ नवतत्त्वादिक के ज्ञान में निपुण होवे. २ धर्मक्रिया में देवादिक की सहायता इच्छे
नहीं. . . . . . . ३ धर्मसे किसीके चलाये चलायमान न
होवे.
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( ४६ )
४. करणी के फलका संदेह न रखे.. ५ साधु सांध्वीकी दुर्गच्छा करे नहीं. ६ निर्ग्रथ प्रवचन के जानकार होवे..
७ हाट हाडकी या धर्मका - रंग लगा
होवे.
·
८ अन्याय पक्षका कभी आश्रय करे नहीं. ६ हृदय स्फटिक रत्न जैसा निर्मल होवे. १० दान देने के लिये घर के द्वार खुले रक्खे. ११ अतीतकारी घरमें प्रवेश करे नहीं. १२ आठम चौदश परवी का पोषध करे.. १३ दुःखी को देख अनुकंपा लावे. १४ यथाशक्ति बारह प्रकार का तप करे. १५ आरंभ परिग्रह से कुछ निर्ते कुछ नहीं निवर्ते.
१६ करण करावासे कुछ निवर्ते कुछ नहीं निवत●
१७ पचन पाचनसे कुछ निवर्ते कुछ नहीं निवर्ते.
१८ अठारह पापस्थानक से कुछ निवर्ते कुछ
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(५०
नहीं निवते.
१९ कुट्ठण पिट्टणसे कुछ निवर्ते कुछ नहीं निवर्ते.
२० पांच इन्द्रियके विषयसे कुछ निवर्ते कुछ नहीं निवर्ते.
२१ सर्व पापयोग से कुछ निवर्ते कुछ नहीं
निवर्ते.
पाठ २२वां गृह विवेक.
१ चूला, परींडा, चक्की; उखणा और भोजनस्थान इन पांचों स्थान पर "चद्रवा बांधने की खास जरूरत है. : २ परांडा, चूला, चक्की, वर्तन और नित्य के काम की अन्य चीजें पुंछणी से पुछे बिना काम में नहीं लाना. ३ नरम बुहारी से यत्नपूर्वक निकाला हुआ बुहारी एकांत स्थान में थोड़ा २ डालना.
४ पानी छानकर पीना नातना भी मोटा
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और अच्छा रखना, पानीमें से निकले हुए जानवर जिस जातिका पानी होने उससे विपरीत जाति के पानी में नहीं
डालना. . . . ५ छाने के टुकड़े चलनी में छाने विना
नहीं जलाना. ६ लकड़ी देख रिना और जमीन पर पट
क कर जंतु रहित किये विना नहीं
जलाना. . . ७ दीपक को ढके विना.नहीं जलाना. - घी, तेल, गुड़, चीनी तथा खाने के
व झूठे अन्न पाणी आदि के वर्तन खुल्ले
नहीं रखना. .९ पाना सूके नहीं ऐसे स्थल पर स्नान
नहीं करना अथवा पानी ढोलना नहीं १० घर के भीतर अथवा बाहर गंदगी नहीं ____ करना.. . . . . ... ११ जानवर पड़ जावे ऐसे धान्य औषधी
आदि वस्तुओं का संग्रह नहीं करना. .
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१५. अव्या बाला सांचा, पलंग, गहा, बनाई - श्रादिप में नहीं डालना... १.३ मी तु में में जानवर निकस नो
रन में या मर जाव पस स्थान पर
नही डालना.. १४ गंद की गुठली जैसे चीकन पदार्थ
घर उधर नही फेकना..... पाठ २३वां दिनचर्या ( पुरुष .. ... वर्ग के लिये. .. .. . १ मातकाल में जल्दी उठने की आदत • ' रखना, चार घड़ी रात्रि शेप रहे जब . ना. . . . .. २ पड़ोसी लोग जागृत होकर पाप कार्य मैं रा होये . उस प्रकार" बोलचाल नहीं करना मगर गुपचुप पवित्र स्थान में पवित्र शरीर से रात्रि प्रतिक्रमण
ज्यादा रात्रि होवे तो कुटुंच जागरिका
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(५३.)
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या धर्मजागरिका करना, कुटुंबजागरिका अर्थात् कुटुंब में कौन दुःखी है किसको सहाय की जरुरत है आदि विचार करना और उसको सहायता देने की इच्छा करते रहना.
४ e से आरंभ समारंभको कमती क रुंगा, a सर्वथा आरंभ समारंभ से नित्त होउंगा और कव समाधिभाव पैदा करूंगा ये तीन मनोरथ चितवना. ५ प्रतिक्रमण व्रत पारने के बाद मातपिता जागृत हुए होंतो उनकी नमन करना. और उस दिन के लिये वे जो कुछ आज्ञा करें उसे ध्यानमें रखना. ६ देहकी हाजत दूर किये वाद गांवमें गुरु विराजमान होवे तो उनके दर्शन करने को जाना व निवृत्ति होवे तो व्याख्यान श्रवण करना.
७ गुरु के दर्शन किये विना चन्न जल नहीं लेने का नियम लेना.....
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(५४) ८ माता पिता को जिमाने के पेस्तर नहीं ___ जीमना. . ९ नोकरी या रोजगार में नीति व प्रमा
णिकता वरावर रखना. १० पुत्र पुत्री को उनकी योग्यता व बुद्धि
के अनुसार उच्च शिक्षा देना. ११ पैसे के लिये वृत्ति नहीं विगाड़ना, हराम - वृत्ति नहीं रखना. १२ नौकरी या रोजगार में नियमित होना
जिस समय जो कार्य नियत किया हो
उस समय वही कार्य करना. १३ दिन अस्त होने के बाद जिमना नहीं
दिन में भी टाइम को छोड़कर जिमना · नहीं; पूरी तौर से भूख लगे विना
जिमना नहीं. . १४.सायंकाल को दिवस का प्रतिक्रमण
करना तत्पश्चात् सज्झाय करना. २५ मातपिता की वैयावच्च तथा धर्मचर्या
करके जल्दी सो जाना और सुबह
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' (५५) जल्दी उठना. . . . १६ किसी की निंदा या विकथा करने में
या सुनने में थोड़ा सा भी समय व्यर्थ
नहीं गुमाना. . . . . . - पाठ २४वां दिनचर्या (स्त्री
वर्ग के लिये ). १ गृह विवेक के पाठ में बतलाई हुई शिक्षाके अनुसार सर्व गृहकार्य विवेक
पूर्वक करना. २ सास, सुसरा, जेठ, जिठानी आदि
वडीलो का विनय करना उनके प्रति पूज्यभाव रखना और भक्ति करना ३ घर के किसी भी. मनुष्य के साथ क्ले
श कंकास नहीं करना. . ४ नौकर चाकर व दास दासी के उपर . दयाभाव रखना प्रसंगोपात उनकी ___सार सम्हाल लेना. : ५ पति और वडीलों की आज्ञा का अना
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दर नहीं करना. ६. किसी के भी साथ हास्य मश्करी करने . की आदत नहीं रखना.. , . ७ निकम्मे बैठे गप्पें नहीं मारना, परन्तु
जहां से शिक्षण मिलता हो वहां से धार्मिक व नैतिक शिक्षण प्राप्त करते
रहना. ८ नीति के और धर्म के पुस्तक . पड़न
और उसमें से शिक्षा सूत्र अपने बच्चों को भी सिखाना. . अपने लड़केको गाली नहीं देना; ज्याद
भय नहीं बताना पर मोठे शब्दों में . शिक्षण देना.. . . . १० अतिथि या मिजमानका आदर सत्कार
करना, किसी का भी अनादर नहीं ... करना. . . . . . . . . . १२ गरीब, रंग और अनाथ की यथा
. शक्ति सहाय करना. . . . . . . . १२. साधु साध्वीयों को निर्दोषः आहार
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(५७)
पानी चढने भाव से वहोराना, साधु.
ओं को कल्पती हुई चीजें असुझती
नहीं रखना. १३ घर विलकुल स्वच्छ रखना, गंदेपन
विलकुल नहीं करना, लड़कों को भी
स्वच्छ रखना. .. ' १४ धर्म किया और व्याख्यान के समय
काम से निपट कर धर्मक्रिया करना
या धर्योपदेश श्रवण करनाः १५ पड़ोशी लोगों के साथ संप सलाह से
रहना निर्जीव वातों के लिये क्लेश, . कंकास नहीं करना. . १६ सास, ससरा, या पति को जिमाने के
. पहले नहीं जीमना परन्तु रात्रिभोजन ... नहीं करने का नियम रखना. पाठ २५वां साधुओं को वहोराने
की विधि. ... . १ खास साधु साध्वी के लिये - आहार
बना कर वहोराना नहीं.
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(५८) २ साधु के लिये आहार विकत लेकर नहीं . वहोराना. . . . . . . . . .: '. । । ३ किसी के पास से उछीता. या उधार __ लेकर आहार नहीं वहोराना. . .. ... ४ ताला, चाबी, संचा, तथा- चणीयारा वाले किवाड़-खोल कर आहार. नहीं
वहोराना. ... ... ... .. ५ उपरके मजले से नीचे लाकर और भोपरे में उपर लाकर आहार नहीं, वहो
राना. . ६. किसी के हाथ में से छिन कर कोई • चीज नहीं वहोराना. .
७ सहीयारी चीजें भागीदार की रजामंदी '- विना नहीं वहोराना.... ८ असुझती कोई भी चीज नहीं वहोराना. . ६ सचित्त वस्तु के साथ जिसका संपट्टा . ही ऐसी चीज़ नहीं बहोराना..... १० अंधे मनुष्य नहीं वहोरा सकते हैं । ११ ताजे लीपण पर चल कर नहीं वहो- .
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वहोराना.
(५६) • १२ हुलते हुलते नहीं वहोराना.
१३ भिक्षुक आदि के लिये रखा हुआ नहीं १४ मकान में उतरने की जिसने आज्ञा दी
हो उसको नहीं वहोराना. १५ बहुत लोग जिमने को बैठे हों वहां से
नहीं वहोराना. १६ साधु के आने के पहले कोई भिक्षुक
आया हो तो उसको देने के पश्चात्
साधू को वहोराना नहीं. १७ लोकापवाद होवे उस प्रकार वहोराना
नहीं. १८ गर्भिणी स्त्री को सातवें महिने के बाद
नहीं वहोराना. १९ बच्चेको दूध पिलाते हुए छोड़ कर नहीं
वहोराना. . २० झूटे हाथ से या झूठी चीजें नहीं वहो२१ वासी और बिगड़ी हुई चीजें नहीं वहो
राना.
राना.
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( ६० )
२२ गंदा, अपवित्र, मलीन व पसीना वाला जल नहीं वहोराना.
२३ धोरण आदि पानी दो बड़ी के पहले नहीं वहोरानाः
२४ जिसको कोट, रक्त पित आदि रोग 'हुआ हो उसको नहीं बहोराना चाहिये.
२५ फूंक मार कर या झट्का डालकर नहीं वहोराना.
२६ तीन द्वार लांघ कर नहीं वहोराना. २७ अनादर करके, बहुत देर लगाके, कटोर वचन सुना कर या मुंह बिगाड़ कर वहीं वोहराना.
२८ आहार वहोरा कर गर्व नहीं करना क पश्चाताप भी नहीं करना.
२९ खुद सुझता होवे तो दूसरे को न कह - कर खुद को ही वहोरांना.
३० कपट से या लालच से नहीं बहोराना. ३१ दोष रहित शुद्ध वस्तु चढते भाव से प्रेमपूर्वक वहोराना.
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________________ दूसरों की छपाई पस्तकें. श्री जैन गजल मुल चमन प्रहार मुफ्त. [5] सूर की एक धर्मवीर का चारेन मुफ्त. [B] लोपयोगी जैन प्रश्नोत्तर दोनों भाग) [4] सातिया डाह [5] जन तरंगणः प्रथम भाग) द्वितीय भाग) उपरोक्त पुस्तके मिलने के पतेः(१) श्रीमान् सिरेमलजी भंडारी पुस्तक विक्रेता, जन पुस्तक प्रकाशक कार्यालय व्यावर, (2) श्रीमान् भैरूलालजी नोरतमानी बाहरा लाखन कोटड़ी अजमेर, (3) श्रीमान् पद्मसिंहजी जैन, मानपाडा आगरा,