SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५३.) , या धर्मजागरिका करना, कुटुंबजागरिका अर्थात् कुटुंब में कौन दुःखी है किसको सहाय की जरुरत है आदि विचार करना और उसको सहायता देने की इच्छा करते रहना. ४ e से आरंभ समारंभको कमती क रुंगा, a सर्वथा आरंभ समारंभ से नित्त होउंगा और कव समाधिभाव पैदा करूंगा ये तीन मनोरथ चितवना. ५ प्रतिक्रमण व्रत पारने के बाद मातपिता जागृत हुए होंतो उनकी नमन करना. और उस दिन के लिये वे जो कुछ आज्ञा करें उसे ध्यानमें रखना. ६ देहकी हाजत दूर किये वाद गांवमें गुरु विराजमान होवे तो उनके दर्शन करने को जाना व निवृत्ति होवे तो व्याख्यान श्रवण करना. ७ गुरु के दर्शन किये विना चन्न जल नहीं लेने का नियम लेना..... "
SR No.010304
Book TitleJain Shikshan Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Pustak Prakashak Karyalaya Byavar
PublisherJain Pustak Prakashak Karyalaya Byavar
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy