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रथनपुर के राजा चंद्रगति ने सीता को भामंडल के लिए देने को कहा परंतु जनक ने सीता को राम को देने की जानकारी दी। उनके अनुसार अब यह कार्य असंभव है। 89 उस पर चंद्रगति ने कहा कि हजारों यक्षों से अधिष्ठित, तेजवान, बज्रावर्त एवं अर्णवावर्त नामक दो धनुषों को आप लेकर जाओ, अगर दशरथ पुत्र राम इन दोनों में से किसी एक की भी प्रत्यंचा चढ़ा ले तो आपत्ति नहीं होगी। ̈ मजबूर जनक को यह शर्त स्वीकार करनी पड़ी।"
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(ई) जैन रामायण का धनुष यज्ञ एवं राम विवाह प्रसंग : बज्रावर्त एवं अर्णवावर्त धनुष लेकर जनक मिथिला आए। चंद्रगति भी साथ में आया । प्रातः काल होने पर धनुष की पूजा की गई। फिर धनुष को मंडप में रखा गया। जनक के द्वारा बुलाये गये अनेक विद्याधर राजा मंच पर बैठे हुए थे। उस समय आभूषण पहने देवी तुल्य सीता सखियों सहित मंडप में आई । सीता ने राम को मन में रखकर धनुषकी पूजा की। भामंडल सीता को देखते ही कामातुर हो गया। " तभी जनक के द्वारपाल ने घोषणा की कि - हे विद्याधरों एवं पृथ्वीपति राजाओ, इन दो धनुषों में से एक पर भी जो प्रत्यंचा चढ़ाएगा वही हमारी पुत्री सीता का पति होगा। ” घोषणा के बाद एक-एक कर राजा धनुष के निकट आए परंतु सर्पों से आवृत्त उस धनुष को स्पर्श करने की भी उनकी हिम्मत नहीं हुई। आखिर "राम" धनुष के समीप आने लगे। उनके धनुष की तरफ आने पर स्वयं जनक, चंद्रगति एवं समस्त विद्याधर आदि उन्हें शंका की दृष्टि से देखने लगे। " तभी राम ने इन्द्र जैसे बज्र को उसी तरह शांत सर्प एवं अग्नियुक्त वज्रावर्त धनुष को उठाकर तुरंत उसकी प्रत्यंचा चढ़ा दी तथा आकर्ण खींचकर भयंकर आवाज करते हुए उसे हिला दिया।
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उसी समय सीता ने "स्वयंवरस्त्रजं रामे विक्षेप मैथिली " अर्थात् माला राम के गले में डाल दीं। तभी लक्ष्मण ने दूसरे धनुष अर्णवावर्त को तुरंत उठा लिया। वहाँ उपस्थित विधाधरों में से अनेक ने अपनी अठारह कन्याएँ लक्ष्मण को सौंप दीं। 98 उसके बाद जनक के संदेश भेजने पर दशरथ ने सपरिवार आकर राम का विवाह सीता के साथ किया। भद्रा का विवाह भरत से हुआ। फिर दशरथ पुत्र व पुत्रवधुओं सहित पुनः अयोध्या पहुँचे । (४) राम के तिलक का आयोजन और उनका अयोध्या से प्रस्थान : (क) तिलक की प्रेरणा : दशरथ ने चैत्य महोत्सव आयोजित किया । " कंचुकी द्वारा स्त्रात्रजल प्रथम पट्टरानी को न पहुँचाने पर पट्टरानी ने फाँसी लगाकर आत्महत्या का निश्चय किया । तभी दशरथ वहाँ पहुँचे एवं स्वयं को अपराधी वता अनिष्ट दूर किया। कंचुकी को राजा ने पूछा तो वह बोला – “दैवं वार्द्धकं मंडपराध्यति" अर्थात् वृद्धत्व अपराधी है जो मुझे आगया है। उसके वृद्धत्व को देख दशरथ ने भी वृद्धत्व के पूर्व ही मोक्षार्थ प्रयत्न करने का सोचा। ``" तभी वहाँ सत्यभूति संघ के चार मुनि आये व दशरथ को
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