Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Vishnuprasad Vaishnav
Publisher: Shanti Prakashan

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Page 171
________________ १९. सत्य बोलने वाले प्राण देकर भी असत्य नहीं बोलते । ३३ २०. वीर पुरुष अन्य वीरों के अहंकार के आडंबर को सहन नहीं कर सकते। २१. सेनापति को जीतने पर सेना स्वतः जीत ली जाती है। 290 २२. तेजस्वियों का निस्तेज होना मौत से भी दुःसह है। 391 २३. अभिमानी पुरुष कहीं भी अभिमान को भूलते नहीं। 322 २४. अपने दुःख को कहने का मित्र के सिवाय अन्य कोई स्थान नहीं। २५. पति-पत्नी एकांत में रहते हुए भी चतुर पुरुष पास नहीं रहते। 394 २६. सेवक स्वामी की तरह स्वामी की संतान पर समान वृत्ति रखने वाले होते हैं। 35 २७. सज्जन सत्यपुरुषों की आपत्ति नहीं देख सकते। 396 २८. प्रायः इष्ट जनों को देखकर दु:ख पुनः ताजा बन जाता हैं। 397 २९. अत्यंत पुण्य या पाप कर्मों का फल नहीं (मृत्युलोक में) मिलता है। 398 ३०. तेज हथियार पास होने पर हाथ से प्रहार कौन करेगा। 399 ३१. सर्वत्र छल बलवान है। 420 ३२. प्रायः धवलगीत (घौल-गीत) की तरह अपहास्य वचन असत्य होते हैं। 402 ३३. महात्माओं का क्रोध प्राणियों के तन (नाश) तक होता हैं । 401 ३४. अपनी प्रतिज्ञा का पालन करना क्षत्रियों का धर्म है। 403 ३५. उदय हुए सूर्य को कौन छिपाने में समर्थ है। 404 ३६. लोभ से हारे हुए मन वालों का विवेक लंबा नहीं होता। 405 ३७. अन्याय भी अगर राजा की आज्ञा से हो तो उसमें भय नहीं होता। 406 ३८. संसार में सबकी मौत अवश्य होने वाली है। 407 ३९. उत्तम पुरुषों के होते हुए कौन सुख से नहीं जीता। 406 ४०. कामांध व्यक्ति क्या नहीं करता। (अर्थात् सब कुछ कर सकता है) 49 ४१. मात्र एक दिन का व्रत ग्रहण भी स्वर्ग की गति देता है। 410 ४२. विश्व में मनुष्य पर शोक-हर्ष आता जाता है। 417 ५३. महात्माओं की प्रतिज्ञा पत्थर में खुदी रेखा के समान होती है। 412 ४४. महात्माओं की प्रतिज्ञा स्थिर होती है। चलायमान नहीं। 413 . ४५. अति बलवान के प्रति कपट ही उपाय हैं। 414 ४६. खलपुरुष सर्वनाशी होते हैं। 415 । ४७. अभिमानी पुरुष धर्म-अधर्म को नहीं गिनते। 416 ४८. मंत्रियों के सामर्थ्य से (राजा के) असत्य में भी सत्यता आ जाती है। 417 ४९. शकुन तथा अपशकुन दुर्बल व्यक्तियों की मान्यता है। 418 ५०. सज्जनों को ममता से प्यार होता है। 419 ५१. सामान्य अतिथि भी पूज्य है फिर पुरुषोत्तम अतिथि की तो बात ही क्या। 20 ५२. अत्यधिक शोक में भी स्त्रियों का कामभाव अनिर्वचनीय होता है। 2। ५३. बड़ों के समक्ष प्रार्थियों की प्रार्थना निष्फल नहीं जाती। 122 170

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