Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Vishnuprasad Vaishnav
Publisher: Shanti Prakashan
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४४.
उपमा व रुपक के समान उत्प्रेक्षा भी अधिक प्रयुक्त हुआ है। वर्णनों में इसका सर्वाधिक प्रयोग हुआ है। कुछ स्थल उल्लिखित हैं। जैन रामायण - १/८, १२, १४, १८, २७, ३८, ३९, ४८, ६२, ६४, ६६, ६९, ७०, ७४, ७५, ७६, ८०, ८३, ८५, ८७, ९२, ९४, १२९, १२४, २/९, १२, १७, ४७, ५३, ५६, ७६, ८६, ८७, ९६, ९९, १०४, १०९, ११७, १५३, १५५, १६५, १७६, १८४, १८७, २१६, २१७, २१९, २२९, २३७, २४१, २५९, २९३, २९७, ३०२, ३०९, ३२६, ३४०, ३४५, ३६४, ३७४, ३७५, ४१०, ४११, ५२३, ५४२, ५५३, ५५९, ५७१, ६०८, ६१२, ६१५, ६२२, ६२८, ६२९, ६४३, ३ /४५, ५७. ८६, १३८, १३५, १९६, ४/१९, १६, ५९, ६९, ९६, १२२, १२३, १७६, २०३, २३१, २६१, २८६, २७७, २८७, २७९, २९३, २९५, २९९, ३८७, ४५४, ४६१, ४७०, ४८४, ५/८, २१, ५६, ५७, ५८-६०, ६३, ७१. ७९, १०९, ११५, ११९, १२९, १३२, १६९, १८८, २१६, ५/३२३, ४०३, ४०५, ४२८, ४४०, ४४९, ६/३२, ४३, ६४, ६५, ६९, ७१, ७४, ७७, ८५, १०८, ११२, ११५, १४३, १७१, १७३, १७८, १९४, २१०, २१६, २४२, २७५, २८२, २८६, २८७, २९४-२९७, ३०५, ३०७, ३११, ३१४, ३१६, ३३९, ३४०, ३५१, ३५५, ३७२, ३७७, ३८२, ४००, ४०४, ४०८, ७/१९, ३६, ५३, ५४, ६२, ६७, ७१, ७५, ८९, १३५, १६१, १८०, १९९, २०२, २२४, २६७, ३९८, ८/३८, १७३, २४३, ९/३३, १३९, १४७, २०६, २१५, १०/८, १४२, आदि स्थल । और देखें - ५/१६४-१६५, ६/१८, ३४४ स्थल। और देखें - २/४२० और देखें - २/५६६, ५७३, ६/११४, ४०३ आदि स्थल। और देखिये - वही - २/४८८, २/५८५-५८७, ३/१२२-१२३, १४९, १५०, १७३, १८७, १८९, ४/९-१०, २५५, ३६८, ३७०, ५/ ५५, १३८, १३९, ३३१-३३२, ३७१, ३८२, ६/१४५ - १४७ आदि स्थल। और देखिये - ४/२४० - २४२, ४६९, ४७१, आदि और भी देखे - २/५०७, ४/५१, ५/९३ आदि देखें। और भी देखिये - वही - २/१९६, १०/१४३ आदि स्थल। और भी देखिये - वही - २/२५८, २६०, २७४, २८९, ६/२३५, आदि स्थल और भी देखिये - वही - त्रिशपुच. पर्व ७ - ०/९५, ९६ और भी देखे - वही - २/२२४, ३/१४१ आदि
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४५. ४६.
४८.
४९. ५०. ५१. ५२.
५३. ५४.

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