Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Vishnuprasad Vaishnav
Publisher: Shanti Prakashan
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३९३. त्रिशपुच. पर्व ७
-
३९४. वही, ७/५७-६२
३२५. त्रिशपुच. पर्व ७, ७/६३-६४
३९६. वही, ७/६६
७/४९-५६
३९७. सुभटा मुग्दराधा तैर्लोठयन्तो द्विपान्मुहु: । दण्ड़कन्दुकिनीं क्रीडां तन्वाना इव रेजिरे || वही - ७/६८
३९८. वही, ७/७०-८७
३९९. त्रिशपुच. पर्व ७, ७/८९-९२
४००. त्रिशष्टिशलाकापुरुष चरित पर्व ७ ( गुजराती भाषांतर) पृ. १०७ अरिहंत
प्रकाशन अहमदाबाद
४०१. वही, ७ पृ- १०८
४०२ . वही पर्व - ७, पृ- १०८
४०३. क्व मारूतिः क्व सुग्रीवस्ताभ्याम्प्यथवा कृतम् ॥
त्रिशपुच पर्व ७, ७/१४५
४०४. नागपाशैस्तथा बद्धो भामंडल कपीश्वरौ ॥ वही - ७/ १५३
४०५. गद्या ताडितः पृथ्वयांमारूतिमूर्च्छितोऽपतत ॥ वही - ७ / १५४ ४०६. त्रिशंपुच पर्व ७ - ४०७. त्रिशंपुच पर्व ४०८. वही, ७/१६९ - १७१ ४०९. वही, ७/१७२-१७३ ४१०. वही, ७/१७७-१७८ ४११. वही, ७/१७९-१८१ ४१२ . वही, ७/१८२-१८५ ४१३. वही, ७/१८६- १८९ ४१४. वही, ७/१९०-१९९ ४१५. वही, ७/२००-२०४
-
-७/१६२-१६६
७ - ७/ १०६ - १६८
४१६. वही, ७/२०५ -२०८ ४१७. रामः सौमित्रिमित्यूचेऽस्माकमेष विभीषणः । आगन्तुर्हन्यतेहन्तधिग्न आश्रितधातिनः ॥
इति रामबचः श्रुत्वा सौमौमित्रीर्मित्रवत्सलः ।
विभीषणाडग्रे गत्वास्थादा क्षिपन् दशकन्धरम् ॥ ७/२१२२१३
४१८. त्रिशपुच. पर्व ७, ७/२१४-२१५
४१९. वही, ७/२१६-२१९
४२०. वही, ७/२२०-२२४
४२१. त्रिशपुच. पर्व ७ २२५ - २२९ व ३३४-३३६
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