Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Vishnuprasad Vaishnav
Publisher: Shanti Prakashan

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Page 160
________________ (६) संवाद : त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व ७ (जैन रामायण) एक पौराणिक काव्य है। पौराणिक काव्यों की विशेषता रही हैं उनकी वक्ताश्रोता की योजना । संवादों को दो भागों में बाँटा जा सकता है- १. श्रृंखलाबद्ध संवाद एवं २. उन्मुक्त संवाद। मुख्य कथा श्रृंखलाबद्ध संवाद के अंतर्गत चलती है एवं बीच-बीच में उन्मुक्त संवाद भी चलते रहते हैं । पात्रों के पारस्परिक वार्तालाप का उद्देश्य कथानक को गति प्रदान करते हुए, पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं का उद्घाटन करना एवं काव्य में नाटकीयता उत्पन्न करना होता है। इस हेतु संवादों का संक्षिप्त, सारगर्भित एवं रोचक होना आवश्यक है । चारित्रिक अंतर्द्वद्व को व्यंजित करने वाले संवाद श्रेष्ठ संवादों की श्रेणी में आते हैं । संवादों के परीक्षणार्थ उनकी अवसरानुकूलता, गत्यात्मकता, प्रभावशीलता, व्यावहारिकतां स्वाभाविकता, एवं व्यंजनाशीलता पर दृष्टि डालेंगे। जैन रामायण में हेमचंद्र ने अनेक संवादों को स्थान दिया है। कृति के संवादों में स्वाभाविकता परिलक्षित होती है। कुछ संवाद संक्षिप्त तो कुछ विस्तारयुक्त भी है। जहाँ-जहाँ मुनि पूर्वभव वृत्तांतादि सुनाने लगे हैं वहाँ संवाद विस्तारयुक्त हो गए हैं। ये सभी संवाद उन्मुक्त संवादों की श्रेणी में आते हैं । जैन रामायण के संवादों को हम निम्न प्रकार से सूची -बद्ध कर प्रस्तुत कर सकते हैंकीर्तिधवल - श्रीकंठ संवाद 259 १. २. ३. ४. ५. ताडित्केश- अब्धिकुमार संवाद 260 रत्नश्रवा - विद्याधर कुमारी संवाद 261 रत्नश्रवा-कैकेसीसंवाद 262 रावण-कैकेसीसंवाद 263 ६. ७. ८. ९. विभीषण- कैकेसीसंवाद 264 अनादृत-यक्ष- दशमुखादि संवाद 264 रत्नश्रवा-दशमुख संवाद 265 पवनवेग -रावण संवाद 266 १०. यम - इन्द्र संवाद 267 ११. रावणदूत - बालि संवाद 268. १२. बालि - रावण संवाद 269 धरण-रावण संवाद 270 १३. १४. रावण - विद्याधर संवाद 271 १५. रावण - शतबाहु मुनि संवाद 272 १६. नारद रावण संवाद 273 १७. रावण-मरुत् संवाद 274 १८. नारद - मरुत् संवाद 275 159

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