Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Vishnuprasad Vaishnav
Publisher: Shanti Prakashan

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Page 163
________________ ८९. राम-शत्रुध्र संवाद १०. राम-देशभूषण मुनि संवाद 349 २१. शत्रुध्र-सप्तर्षि संवाद 350 ९२. राम-सीता संवाद 35 ९३. विजय-राम संवाद 352 | ९४. कृतांतवदन-सीता संवाद 353 ९५. सैनिक-सीता संवाद 354 ९६. कृतांतवदन-राम संवाद 355 ९७. नारद-अंकुश संवाद 356 ९८. भामंडल-लवणांकुश संवाद 357 २९. नारद-राम-लक्ष्मण संवाद 357 १००. जयभूषण-राम संवाद 358 १०१. जयभूषण-विभीषण संवाद 359 १०२. जटायुदेव-राम संवाद 360 १०३. सीतेन्द्र राम मुनि संवाद 361 १०४. वज्रसंघ-नारद संवाद 362 उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि हेमचंद्र ने जैन रामायण में संवाद के महत्व को स्वीकार किया है। विवेचित संवादों में कुछ तो साधारण महत्व के है। कुछ संवादों के माध्यम से भावी कथा का संकेत किया है। कथा को गति देने के लिये बीच-बीच में "एक स्त्री'',362 कोई पुरुष, आदि अनाम पात्रों को साथ लेकर संवाद श्रृंखला को आगे बढ़ाया है। संवादों मे कवि का जैन धर्म के प्रति विशेष पूर्वाग्रह लक्षित होता है। यह पूर्वाग्रह इतर पाठकों को आकर्षित नहीं करता। उदाहरणार्थ हम यहाँ रावण-सीता-मंदोदरी संवाद का अंश प्रस्तुत कर रहे हैं मंदोदरी : हे सीता। तू धन्य है क्योंकि विश्वपूजित चरणकमलवाला मेरा महाबलवान पति तुझे चाहता है। अब भी अगर तुझे रावण प्राप्त हो तो पृथ्वी पर भ्रमण करने वाले रंक पति क्या हैं । सीता (सक्रोध): कहां सिंह और कहाँ सियार। कहाँ गरुड़ और कहाँ कौआ। कहाँ राम और कहाँ तेरा पति रावण। तेरा और रावण का दाम्पत्य योग्य है क्योंकि रावण स्त्रियों में रमण करने वाला और तू उसी का कार्य करने वाली है। बात करना तो दूर रहा, तू देखने योग्य भी नहीं है। मेरी आँखों से दूर हो, जा, जा। रावण : अरे सीते! तू क्यों क्रोधित हो रही है। मंदोदरी तेरी दासी है। मैं स्वयं तेरा सेवक हूँ। हे देवी! मुझ पर कृपा करो। हे सीते! मुझको दृष्टि से भी प्रसन्न क्यों नहीं कर रही हो। 162

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