Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Vishnuprasad Vaishnav
Publisher: Shanti Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 158
________________ इस प्रकार कृति में आए अनेक उदाहरण हेमचंद्र की समास शैली के साक्ष्य हैं। अलंकारिक एवं संश्लिष्ट वर्णनों में भी हेमचंद्र ने इस समस्त भाषा का खुलकर प्रयोग किया है। समस्त भाषा का प्रयोग कर हेमचंद्र दंडी, बाण, सुबन्ध, रविणेश आदि की परंपरा में आ खड़े हुए हैं।" दूसरी तरफ इसी कृति में समास रहित छोटे-छोटे वाक्यांश भी मिलते हैं । हेमचंद्र रससिद्ध कवि थे। रस व्यंजना के अंतर्गत हम इनकी रसाभिव्यक्ति पर दृष्टिपात कर चुके हैं। इसी रसाभिव्यंजना के लिए कवि का मोह सरल वाक्यों एवं सरल भाषा के प्रति रहा है। भाषा की सरलता निम्र उदारहण द्वारा आंकी जा सकती है या भ्रान्त्वाखिलां पृथ्वीं सम्यऽमार्गयतापि हि । न साप्ता मंदभाग्येन रत्नं रत्नाकरे यथा ॥ तदर्द्ध स्वां तनुमिमां जुहोम्यत्र हुताशने । जीवतो मे यावज्जीवं दुःसहो विरहनलः ॥ यदि पश्यथ में कान्तां ज्ञापयध्वं तदाह्यदः । त्वद्वियोगात्तव पतिः प्रविवेश हुतांशने ॥ इत्युक्त्वा तत्र चित्यायां दीप्यमाने हविर्भुजि । झंपां प्रदातुं पवनः प्रोत्पपात नमस्तले । 248 हेमचंद्र की भाषा कहीं कहीं कृत्रिमता की शिकार भी हुई है। कुछ अवसर ऐसे भी आए हैं जहाँ कवि ने स्वाभाविकता से वैराग्य प्राप्त कर बनावटी - पन को गले लगाया है। निम्न उदारहण में जहाँ कवि ने ( तड़तड़ति, झलज्झलिति, खड़त्खड़िति एवं कड़त्कड़िति ) शब्दों द्वारा ध्वन्यात्मकता पैदा की है वहीं भाषा कृत्रिमातापूर्ण भी हो गई है - तडत्तडितिनिर्घोषं चित्रस्तव्यन्तरामरम् । झलज्झलितिलोलब्धिपूर्यमाणरसातलम् ॥ कडत्कडिति निर्मग्नं नितम्बोपवनहुमम् ॥ 249 हेमचंद्र की भाषा में जहाँ रौद्र या भयानक रस उत्पन्न हुआ है उस स्थल पर कठोर वर्गों का प्रयोग हुआ है । यथा - रावण के द्वारा क्रोधित किए हुए भयंकर रूप वाले, उछलते हुए, दुष्ट चेष्टाओं वाले, यम के मंत्रियों जैसे भयंकर चीत्कार करने वाले पक्षियों जैसे, फुफकार करते सियारों, विचित्र आक्रंद करते हुए जानवरों, लड़ते हुए वन बिलावों, पूँछ पछाड़ते हुए वाबों, फुफकार करते साँप, तलवार खींचते हुए पिशाच, प्रेत, बेताल एवं भूत सीता के पास जाने लगे । यहां भाषा ने भावों का अनुकरण किया हैधूत्कारिणो महाधूका: फेत्कुर्वाणाश्च फैखः । वृका विचित्रं क्रन्दन्त ओतवोऽन्योन्ययोधिनः । 157

Loading...

Page Navigation
1 ... 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216