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पवनंजय जब अंजना सुन्दरी को छोड़कर चला गया तब उस निर्दोष वाला का हृदय विरहाग्नि से प्रदीप्त हो उठा।
बिना शशाङ्कं श्यामेव सा बिना पवनजंजयम्। वाप्यान्धकारवदना तस्थावस्वास्थय भाजनम् ।। पावद्वितयमानंत्याः पर्यडकस्प मुर्ह मुहुः । तस्याश्य संवत्सर वद्राधीयस्योऽ भवन्निसा ॥ अन्नयमानसा जानुमध्यन्यस्तमुखाम्बुजा। भर्तुरालेखनैरेव व्यतीयाय दिनानि सा। मुहुरालप्यमानापि सखी भिश्चाटुपूवकम् ।
पुरपुष्टेव हेमंते न सा तुष्णीकर्ता जहौ ।'
इसी प्रकार आगे भी अंजना के वियोगजन्य भावादि का ब्यौरा दिया गया है जो स्थानानुरोध के कारण विस्तृत नहीं हो सकता है।
__ हास्य : जैन रामायण में हास्य रस की आंशिक अभिव्यक्त ही देखने को मिलती है। यथा-हनुमान द्वारा सीता की खोज के प्रसंग में, हनुमान रावण संवाद, हनुमान को रावण द्वारा गधे पर बिठाकर, पंचशिख करके लंका की गलियों में घुमाने का आदेश आदि प्रकरण हास्य की झलक देते हैं।'
करुण : हेमचंद्र की करुण रस व्यंजना का वैभव जैन रामायण में स्थान-स्थान पर लक्षित हुआ है। हेमचंद्र ने अपनी रामकथा में लगभग साठ हजार राजा-रानियों की दीक्षा लेने का वृत्तांत दिया है। स्वाभाविक ही है कि संसार से विरक्त होकर जब मानव सन्यास धारण करता है तो कवि वहाँ सहज ही करुणाजन्य वातावरण का सृजन कर सकता है। जैन रामायण में अनेक स्थानों पर करुण विलाप वर्णन देखने को मिलते हैं- १. पुत्र व पति की मृत्यु पर चंद्रणखा का विलाप, २. लक्ष्मण के युद्ध भूमि में अमोध विजया प्रहार से मूर्छित होने पर राम का विलाप, ३. रावण की मृत्यु पर विभीषण, मंदोदरी आदि का विलाप, ४. सीता के परित्याग पर राम का विलाप, ५. लक्ष्मण की मृत्यु पर कौशल्या व राम का विलाप आदि। उपर्युक्त प्रसंगों के अतिरिक्त भी अनेक राजाओं के दीक्षा ग्रहण करते समय अत्यंत कारुणिक दृश्य उपस्थित हुए है।
उदारहणस्वरूप "लक्ष्मण की मृत्यु पर राम-विलाप एवं सीता के परित्याग पर राम की दशा के कुछ अंश यहां दिए जा रहै हैं।''
त्व किं बाधते वत्स ब्रुहि तूष्णीं स्थितोऽसि किम्। संज्ञयाऽपि समाख्याहि प्रीणयाऽग्रजमात्मनः ॥ एते त्वनमुखनीक्षन्ते सुग्रीवाद्यास्तवानुगाः ॥ नानुग्रह्णासि किं वाचा दृशा वा प्रियदर्शन ।। जीवनाणाद्रावणोऽगादिति लज्जावशाध्यु वम् ॥ न भाषसे तद्भाषस्व पूरयिप्ये तवेप्सितम् ॥
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