Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Vishnuprasad Vaishnav
Publisher: Shanti Prakashan

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Page 126
________________ ४२२. वही ७. ७/२४०-२४६ ४२३. वहीं, ७/२६०-२६२ ४२४. वही, ७/२६९-२७४ ४२५. वही, ७/२७४-२७७ ४२६. वही, ७/२७८-२८३ ४२७. वही, ७/२८४-३०२ ४२८. त्रिशपुच. पर्व ७ - ७/३०२-३०७ ४२९. षेषयिष्यत्यर्चयित्वा जानकी रावणो यदि। तदा मोक्ष्यामि तद् बंधुनयानयथा न हि ॥ त्रिशपुच पर्व ७ - ७/३२०-३१३ ४३०. वही, ७ / ३२२ - ३२६ ४३१. वही, ७ / ३२७ - ३३७ ४३२. अथ मंदोदरी द्वाः स्थं यमदण्डमदोडवतद् । जिनर्धमरतो डष्टाहान्यस्तु ोडपि पूर्जन : । ७/३३९ ४३३. त्रिशपुच. पर्व ७, ७/३५० ४३४. वही, ७ / ३५१-३५२ ४३५. त्रिशपुच. पर्व ७ / ३५४-३५५ ४३६. बध्धवेह राम सौमित्री समानेस्ये ततस्तयो :। अर्पयिष्याम्यभू धर्म्य यशस्यं च हि तद्भवेत ॥ वही, ७ / ३६० - ३६१. ४३७. स्मृतिमात्रोपस्थितायां विद्यायां तत्र रावणः । विचक्रे भैरवाण्याशु स्वानि रुपाण्यनेकशः ॥ वही, ७ / ३६५ - ३६६ ४३८. वही, ७ / ३६७ - ३७१ ४३९. ते सर्वे शिश्रियुः पद्मसौमित्री तौ च चक्रतुः। तैषां प्रसादं वीरा हि प्रजासु समदृष्य्या ॥ वही ८/३ . ४४०. त्रिशपुच पर्व ७ - ८/४ - ५ ४४१. वही ७, - ८/६ - ८ ४४२. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित - प्रकाशक - अरिहंत प्रकाशक अहमदाबाद. ४४३. कुंभकर्णेन्द्रजिन्मेधवाहनाद्या निशम्य तत्। मन्दोदर्यादयश्चापि तदैवाददिरे व्रतम् ॥ त्रिशपुच पर्व - ७, ८/३४ ४४४. तामुत्क्षिप्य निजोत्सङ्गे द्वितीममिव जीवितम्। तदैव जीवितंमन्यो धारयामास राघवः ॥ वही - ८/३८ ४४५. त्रिशपुव पर्व ७, ८/३६, ३७, ३९-४३ ४४६. वही, ८/४५ - ४९ ४४७. रत्नस्वर्णादिकोशोडयंमिदं हस्तिहयादि च। अयं च राक्षसद्वीपो गह्यतां पतिरस्मि ते ॥ वही - ८/५१ 125

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