Book Title: Jain Ramayan
Author(s): Vishnuprasad Vaishnav
Publisher: Shanti Prakashan

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Page 123
________________ ३२६. ऊचे लक्ष्मणः कुद्धः कृतकृत्योऽसि बानर । सुखं तिष्ठसि निःशडकः स्वाडन्तः पुरसमावृतः ॥ वही - ६/१८७ ३२७. भो मौः सर्वेऽपि दोर्भृतः । सर्वत्राड स्खलिता यूयं गवेषयत मैथिलीम् ॥ वही - ६ / १९२ ३२८. वही, ६ / १९३ ३२९. वही, ६ / १९६-१९८ ३३०. वही, ६ / १९९-२०० ३३१. वही, ६ / २०१ - २०४ ३३२. वही, ६ / २०६ ३३३. वही, ६ / २११ ३३४. जाम्बवान् व्याजहाराथ सर्व वो युज्यते परम् । यो हि कोटिशलोत्पाटी स हनिष्यति रावणम् । त्रिशपुच पर्व ७ - ६/२१२ ३३५. त्रिशपुच. पर्व ७ ६/२१३-२१४ ३३६. वही, ६ / २१५ - ३३७. कपिवृद्धास्ततः प्रोचुर्युष्मतो रावणक्षयः २ वही - ६ / २१७ ३३८. वही, ६ / २२२-२२३ ३३९. वही, ६ / २२४-२२५ ३४०. वही, ६ / २२८- २२८ ३४१. वही, ६ / २३१ ३४२. वही, ६/२३१ ३४३. त्रिशपुच. पूर्व - ७,६ / २३३ ३४४. वही, ६ / २३४ ३४५. वही, ६/२३६ ३४६. त्रिशपुच. पर्व ७ - ६ / २३४-२३९ ३४७. वही, ६ / २४०-२४२ ३४८. वही, ६ / २४३-२४७ ३४९. वही, ६ / २४८ - २५० ३५०. वही, ६ / २५२ ३५१. वही, ६/२५३-२५६ ३५२. त्रिशपुच. पर्व ७ - ६ / २६६-२६७ ३५३. वही, ६ / २६८-२६९ ३५४. वही, ६ / २७० - २७१ ३५५. वही, ६ / २७२-२७५ ३५६. वही, ६ / २७८ ३५७. वही, ६ / २८० 122

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