Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 7
________________ १३३ ( १५) भिन्न वर्ण या भिन्नजातिके तुम भी सब हो । किन्तु तुम्हारा एक लक्ष्य हो, एकी ढब हो ॥ मुसलमान, या आर्य जैन, ईसाई, तुम हो। स्मरण रहे, इस जन्मभूमिमें भाई तुम हो॥ रूप-रंग-आकारमै भाषामें तुम भिन्न हो। जन्म-भूमि-सेवा करो; यह कर्तव्य अभिन्न हो ॥ -रूपनारायण पाण्डेय । ग्रन्थ-परीक्षा। (२) कुन्दकुन्द-श्रावकाचार। जैनियोंको भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यका परिचय देनेकी जरूरत नहीं है । तत्त्वार्थसूत्रके प्रणेता श्रीमदुमास्वामी जैसे विद्वानाचार्य जिनके शिष्य थे, उन श्रीकुन्दकुन्द मुनिराजके पवित्र नामसे जैनियोंका बच्चा बच्चातक परिचित है। प्रायः सभी नगर और ग्रामोंमें जैनियोंकी शास्त्रमभा होती है और उस सभामें सबसे पहले जो एक बृहत् मंगलाचरण (अकार ) पढ़ा जाता है, उसमें 'मंगलं कुन्दकुन्दार्यः' इस पदके द्वारा आचार्य महोदयके शुभ नामका बराबर स्मरण किया जाता है। सच पूछिए तो, जैनसमाजमें, भगवान् कुन्दकुन्दस्वामी एक बड़े भारी नेता, अनुभवी विद्वान् और माननीय आचार्य होगये हैं। उनका अस्तित्व विक्रमकी पहली शताब्दीके लगभग माना जाता है । भगवत्कुंदकुंदाचार्यका सिक्का जैनसमाजके हृदयपर यहाँतक अंकित है कि बहुतसे ग्रंथकारोंने और खासकर भट्टारकोंने अपने आपको आपके ही वंशज प्रगट करनेमें अपना सौभाग्य और गौरव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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