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१०, ११, ५७, पद्य नं. १०-११ में सोते समय ता-१४२, १४३, म्बूलादि कई वस्तुओंके त्यागका कारण| १४४, १४६, सहित उपदेश है; ५७ वाँ पद्य पुरुषपरी
१८८ से १९२ क्षामें हस्तरेखा सम्बंधी है। दोनों ग्रंथों में तक ( १२ श्लोक ) इस परीक्षाके ७५ पद्य और हैं; १४२,
१४३, १४४ में पद्मिनी आदि स्त्रियोंकी पहचान लिखी है। इनसे पूर्वके पद्यमें उनके नाम दिये हैं।१४६ में पतिप्रीति ही स्त्रियोंको कुमार्गसे रोकनेवाली है, इत्यादि. कथन है। शेष ५ पद्योंमें ऋतुकालके समय कौनसी रात्रिको गर्भ रहनेसे कैसी संतान उत्पन्न होती है, यह कथन पाँचवीं रात्रिसे १६ वीं रात्रिके सम्बंधमें है। इससे पहले चार रात्रियोंका कथन दोनों ग्रंथोंमें है।
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२५३ ४९, ६०, ६१, २५३ वाँ पद्य ममिांसक मतके प्रकरण(१ श्लो. )७४, ८५, २५५, का है। इसमें ममिांसक मतके देवताके
२९३ का उत्तराध निरूपण और प्रमाणोंके कथनकी प्रतिज्ञा ३४३ का उत्तरार्ध, है, अगले पद्यमें प्रमाणोंके नाम दिये ३४४ का पूर्वाध, हैं । और दर्शनोंके कथनमें भी देवताका ३६६ का उत्तरार्ध, वर्णन पाया जाता है। पद्य नं. ४९ में ३६७ का पूर्वाध, अल्पवृष्टिका योग दिया है; ६० में किस ४२० के अन्तिम किस महीने में मकान बनवानेसे क्या लाभ तीन चरण और हानि होती है; ६१ में कौनसे नक्षत्रमें ४२१ का पहला घर बनानेका सूत्रपात करना; ७४ में चरण; यक्षव्ययके अष्ट भेद, इससे पूर्वके पद्यमें | (९३ श्लोक ) यक्षव्यय अष्ट प्रकारका है ऐसा दोनों
ग्रंथों में सूचित किया हैं, ८५ वाँ पद्य 'अपरं च' करके लिखा है; ये चारों पद्य गृहनिर्माण प्रकरणके हैं। २५५ वाँ पद्य जनदर्शन प्रकरणका है। इसमें श्वेताम्बर साधुओंका स्वरूप दिया है । इससे अगले पद्यमें दिगम्बर साधुओंका स्वरूप है।
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