Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 66
________________ सेठीजी और उनके शिष्य देहलीसे वापस लाकर छोड़ दिये गये हैं तब बहुत कुछ सन्तोष हुआ। परन्तु थोड़े ही दिन बाद ता. २३ को जब वे फिर गिरिफ्तार कर लिए गये और साथ ही शिवनारायण द्विवेदी, मोतीचन्द शाह आदि उनके तीन चार विद्यार्थी भी गिरिफ्तार किये गये, तब हम लागोके आश्चयका कुछ ठिकाना नहीं रहा। अब तक सब लोग हवालातमें ही हैं परन्तु स्पष्टतः यह किसी पर भी प्रकट नहीं है कि ये सब क्यों गिरिफ्तार किये गये हैं। केवल यही सुना जाता है कि देहलीके. राजद्रोहसम्बधी मामलेमें सन्देहके कारण ये सब पकड़े गये हैं। जब तक यह मामला अदालतमें न आ जावे और कुछ खुलासा मालूम न हो तब तक इस विषयमें हमें कुछ लिखनेका आधिकार नहीं। परन्तु यह हम अवश्य कहेंगे कि सरकारको बहुत सोच समझकर ये मामले चलाने चाहिए। कहीं ऐसा' न हो कि व्यर्थ ही निरुपद्रवी और शान्तिप्रिय लोग, सताये जावें और इसका लोगोंके चित्तपर कुछ और ही परिणाम हो। हमें विश्वास है कि जैनप्रजा जिसे वास्तवमें राजद्रोह कहते हैं उससे कोसों दूर है। ४ रोगनिवारिणी रमणी । पेरिस (फ्रान्स ) के पत्रोंमें वहाँकी 'मेडम ललोज' नामकी एक स्त्रीवेज सम्बन्धामें बड़ी ही आश्चर्यजनक बातें प्रकाशित हुई हैं । वचय नमें ज्योंही वर किसी झाडपर अपना हाथ रखली थी त्योंही उसके पत्ते और फूल खिल उठते थे। इस समय वह चाहे जिस रोगीको हाथसे स्पर्श करके या केवल दृष्टिपात करके नीरोग कर सकती है। इस तरह रोग दूर करते समय उसके हाथमेंसे एक प्रकारका प्रबाह निकलता है। यह प्रवाह यदि फोटो लेनेके काच पर डाला जाता है तो उसपर नुनहरी या गुलाबी निशान हो जाते हैं। जब वह दूसरोंका दर्द दूर कर चुकती है तब उसे थाडी देरके लिए रर्द होने लगता है जो कि आपही आप आराम हो जाता है । सैकडों मीलकी दूरी पर रहनेवाले रोगीको भी वह अपने घर बैठे आराम पहुँचा सकली है । वह न तो विज्ञापन प्रकाशित कराती है और न मान तथा धनंकी वह इच्छा रखती है। वह बहुत ही धर्मपरायणा है। यह एक आत्माकी अद्भुत शक्तियोंका प्रत्यक्ष दृष्टान्त है। भ्रमसंशोधन । जैनहितैषीके पिछले अंकके 'ग्रन्थपरीक्षा' नामक लेखका प्रूफ सावधानीसे नहीं देखा गया, इस लिए उसमें बहुतसी अशुद्धियाँ रह गई हैं। श्लोकोंके नम्बरों और शब्दोंमें बहुत प्रमाद हुआ है। इसका वर्तमान्त है। आशा है कि पाठक इसके लिए हमें क्षमा करेंगे और लेखको विचाालिसीकोढनेकी कृपः करेंगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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