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कन्द कुन्द श्रावकाचार में भी मौजूद हैं। इसके सिवा विवेकविलासकी एक • चार पाचसा वपर्का लिखी हुई प्राचीन प्रति बम्बईके जनमंदिरमें मोजद है । * परन्तु कुंद कुंदश्रावकाचारकी कोई प्राचीन प्रति नहीं मिलती । इन सब बातोंको होड कर, खुद ग्रंथका साहित्य भी इस वातका साक्षी नहीं है कि यह ग्रंथ भगवत्कुंदकुंदाचार्यका बनाया हुआ है। कुदकुदस्वामीकी लेखनप्रणाली उनकी कथन शैली-कुछ और ही ढंगी है; और उनके विचार कुछ और ही छटाको लिये हुए होते है । भगवकुंद्रकुंदके जितने ग्रंथ अभी तक उपलब्ध हुए हैं वे सब प्राकृत भाषा में है ! परन्तु इन श्रावकाचारकी भाषा संस्कृत है; समझमें नहीं आता कि जब भगवत्कटकुंदने बारीकसे बारीक, गूढसे गूढ़ और मुगम ग्रंथोंको भी प्राकृत भाषामें रचा है, जो उस समयके लिए
योगी गापा थी तब वे एक इमी, माधारण गृहस्थोंके लिए बनाये हए, प्रथको संस्कृत भाषामें क्यों रचतेपरन्तु इसे रहने दीजिए । जैन समा जग आजकाट जो भगवत्कुंदकुंदके निर्माण किये हुए समयसार, प्रवचनमारादि ग्रंथ प्रचलित है उनमें किसी भी ग्रंथकी आदिमें कुंदकुंद म्वामीने अपने गुम जिनचंद्राचार्य ' को नमस्काररूप मंगलाचरण नहीं किया है। परन्तु श्रावकाचारके, ऊपर उद्धृत किये हुए, तीसरे पद्यों ‘वन्द जिनविधं गुरुम् इस पदके द्वारा जिनचंद्र' गुरुको नमस्कार रूप मंगलाचरण पाया जाता है । कुंदकुंदस्वामीके ग्रंथोंमें आम तौर पर एक पद्यका मंगलाचरण है। सिर्फ 'प्रवचनसार ' में पाँच पद्योंका मंगलाचरण मिलता है। परन्तु इस पाँच पद्यों के विशप मंगलाचरणमें भी जिनचंद्रगरुको नमस्कार नहीं किया
विवेकविलापको इस प्राचीन प्रतिका समाचार अभी हालमें मुझे अपने एक मित्र द्वारा मालूम हुआ है ।
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