Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 46
________________ १७२ तो वह भी ठीक नहीं है। क्योंकि उन प्रान्तोंसे यह स्थान बहुत ही दूर है जहाँ कि कालेजोंमें पढ़नेवाले जैन विद्यार्थियोंकी बहुलता है। जैन कालेजके योग्य स्थान देहली है, वहाँ चाहे जितने विद्यार्थी मिल सकते हैं परन्तु सेठजी अपनी संस्था इन्दौरमें ही स्थापित करना चाहते हैं। तीसरे जैन समाजमें अभीतक ऐसे स्वार्थत्यागी और सुयोग्य वर्कर या काम करनेवाले नहीं दिखाई देते जो एक अच्छे कालेजको चला सकें। यदि इन्दौरके सेठ तिलोकचन्द हाईस्कूलको ही हम लोग अच्छी तरह चला सके और उसे एक आदर्श शिक्षा संस्था बना सके तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि उक्त हाईस्कूल ही थोडे समयमें जैन कालेजका रूप धारण कर लेगा, अर्थात् इस हाईस्कूलको ही जैन कालेजका प्रारंभ समझना चाहिए। उदारहृदय सेठ कल्याणमलजी इसमें और भी कई लाख रुपया लगा देनेकी पवित्र इच्छा रखते हैं। ऐसी अवस्थामें उक्त चार लाखकी रकमसे हमें कालेजके सिवा और ही किसी आवश्यक संस्थाके खुलनेकी प्रतीक्षा करना चाहिए। जैनसमाजमें अभी बीसों उपयोगी संस्थाओंकी आवश्यकता है जिनमेंसे यहाँ मैं दो चार संस्थाओंका उल्लेख किये देता हूँ: १ जैनशिक्षाप्रचारकभण्डार-इस समय एक ऐसी संस्थाकी बड़ी भारी ज़रूरत है कि जिससे चाहे जहाँ चाहे जिस प्रकारकी शिक्षा पानेवाले जैन विद्यार्थियोंको मासिक वृत्तियाँ, एक मुश्त पारितोषक या सहायतायें दी जा सकें । ऐसे अनेक स्थान हैं जहाँपर जैनविद्यार्थी रहते हैं और सरकारी या गैरसरकारी शिक्षासंस्थायें भी हैं । परन्तु द्रव्याभावसे स्कूलोंकी फीस न दे सकनेके कारण वे पढ़ नहीं सकते हैं। बहुतसे विद्यार्थी उच्चश्रेणीकी शिक्षा प्राप्त करनेके लिए देशके ही अन्य स्थानोंमें या विदेशोंमें जाना चाहते हैं परन्तु सहायताके बिना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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