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बहुत कष्टप्रद होगा, जो इससे बडी बडी आशायें कर रहे हैं। क्योंकि छोटी छोटी संस्थाओंके खोलनेवाले तो बहुतसे हैं-छोटी संस्थायें हैं भी अनेक; परन्तु एकमुश्त इतनी बड़ी रकम देकर एक विशाल संस्था खोलनेवाले एक सेठजी ही हैं । उन्हें अपनी इस विशेषतापर ध्यान रखना चाहिए।
कविवर बनारसीदासजी पर एक भ्रममूलक
आक्षेप। "सुनी कहे देखी कहें, कलपित करें बनाय । दुराराध ये जगतजन, इन सौं कछु न वसाय ॥"
-अर्धकथानक। नाटकसमयसार, बनारसीविलास आदि आध्यात्मिक ग्रन्थोंके कर्ता कविवर बनारसीदासजीसे प्रायः सारा जैनसमाज परिचित है। जैनधर्मके भाषासाहित्यमें उनकी जोडका शायद ही और कोई कवि हुआ हो । उनकी रचना बहुत ही उच्चश्रेणीकी है । वे केवल अनुवादक, या - टीकाकार नहीं थे--किन्तु धर्मके मर्मको समझकर और उसे अपने रंगमें रंगकर अपेन शब्दोंमें प्रगट करनेवाले महात्मा थे। वे स्वयं अपना ५५ वर्षका जीवनचरित ( अर्धकथानक ) लिखकर भाषासाहित्यमें एक अपूर्व कार्य कर गये हैं और बतला गये हैं कि भारतवासी विद्वान् भी इतिहास और जीवनचरितका महत्त्व समझते थे
और उनका लिखना भी जानते थे । उनके ग्रन्थोंका जैनधर्मके तीनों सप्रदायोंमें एकसा आदर है; सब ही उन्हें भक्तिभावपूर्वक पढकर आत्म| कल्याण करते हैं।
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