Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 03 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 6
________________ ( ११) होगा क्या परिणाम, सुनो, सब फूल झड़ेंगे: यथासमय फल सभी भमिपर टपक पड़ेंगे। सुन्दरताके साथ मित्र भी त्याग करेंगे। जान वही जड़ रूख, न हम अनुराग करेंगे। इससे तुम निज मित्रकी सम्मतियोंपर कान दो अच्छे जो उपदेश हो, उनके ऊपर ध्यान दो। वह अशोकका वृक्ष, शोकसे आप रहित है। और स्निग्धता-शीतलता-सौभाग्य-सहित है ।। छाया अपनी घनी सुविस्तृत करके वनमें करता सुखसञ्चार पथिक-आश्रितके मनमें । सबको, करे अशोक: यो शुभ शोभा रमणीय है। इसका पर-उपकार यह, सचमुच अनुकरणीय है । देखो फूलोंको, विचित्रता इनमें वह है: जो उन्नतिका मूलमन्त्र सुखका संग्रह है ॥ इन फूलोंमें अगर न होती यह विचित्रता। जो आकार-आकारमें न होती विभिन्नता ! होते एकसमान जो रूप-रंगमें ये सभी। तो शोभासे विश्वको मुग्ध न करसकते कभी हे विभिन्नता यद्यपि इनके रंग ढंगमें । पर सव है, उदेश्य एकसे, लगे संगमे । अपने अपने रूप-रंग-सोरभ-विलाससे। जन्मभूमिको करें सुशोभित निज विकाससे ।। होनहार है वालको, ये जड़ है, पर धन्य है । जन्मभूमि-सेवा निरत, उसके भक्त अनन्य है ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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