________________
विद्यार्थियों में इन दो बातोके कारण तो बड़ाई छुटाई होना आवश्यक है। इनके विना विद्यार्थी में उन्नतिकी इच्छा होना कठिन है; पर इनके अतिरिक्त अन्य बातोमें समानता होना जरूरी है। जिन लोगोका इस
ओर ध्यान नहीं है वे शिक्षा और सभ्यतासे अपरिचित है। ___अभी तक तो हमने उन बातोंका जिक्र किया है जिन्हें विद्यार्थियोंको अपने जीवनका उद्देश्य नहीं बनाना चाहिए; पर अव प्रश्न यह है विद्यार्थीके जीवनका क्या उद्देश होना चाहिए । केवल सभ्य और शिक्षित सृष्टिमें ही नहीं किन्तु, अशिक्षित देशोंमें भी विद्यार्थीका जीवन एक विशेष उद्देश्यके लिए निर्णीत होता है । कोई व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि विद्या क्या वस्तु है और क्या क्या विद्या किस किस अवस्थामे पढना योग्य है परन्तु यह बात सब जानते और मानते हैं कि हर प्रकारको शिक्षाका अभिप्राय केवल एक होता है । वह मानवीय उन्नति है। मानवीय उन्नति कोई सन्देहजनक बात नहीं। ऐसे पुरुप बहुत कम होगे जिन्होंने वह अवस्था न देखी होगी जब किसकि घर पुत्र उत्पन्न होता है तो मातापिताके मनमें अकथनीय अपार आनन्द होता है; परन्तु इतना प्रेम होनेपर भी वे बहुत थोड़ी ही अवस्थामें उसपर जीवनका भार डाल देते है । हमारे देशमें तो ३, ४ वर्षकी उमरमें ही उन्हें पाठशालादिमे बिठा देते हैं। यद्यपि ऐसी अवस्था में शिक्षा देना अत्यन्त हानिकर है। कमसे कम ६,७ वर्ष तक घर ही धीरे धीरे मातापिता द्वारा शिक्षा होनी चाहिए; किन्तु इससे इतना अवश्य जान पडता है कि मातापिताकी यह इच्छा होती है कि यथासम्भव उनकी सन्तानकी दशा अच्छी हो। इस कारणसे मैने कहा है कि शिक्षाका अभिप्राय सदा उन्नत होता है। चाहे यह शिक्षा स्कूलमें दी जाए, चाहे पाठशालामें और चाहे घरपर । अतएव विद्यार्थीके जीवनका