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प्रकाशकीय
प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक प्रो. डॉ. मोहनलाल मेहता अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के जैन विद्वान् हैं । इन्होंने जैनविद्या से सम्बद्ध अनेक विषयों पर महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं । इनके अंग्रेजी एवं हिन्दी दोनों भाषाओं के ग्रन्थ लोकप्रिय सिद्ध हुए हैं। कुछ ग्रन्थ तो तीन बार प्रकाशित हो चुके हैं। इनका जैन दर्शन राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश की सरकारों द्वारा सन् १९६० में, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (भाग ३) उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सन् १९६८ में तथा जैन धर्म-दर्शन (जैन दर्शन का परिवर्तित रूप) उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सन् १९७४ में पुरस्कृत हुआ है। ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद से प्रकाशित प्राकृत प्रोपर नेम्स इनकी विशाल एवं विशिष्ट चिरस्थायी कृति है । डॉ. मेहता पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी के संस्थापक निदेशक एवं पूना विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग में जैन दर्शन के संस्थापक प्राध्यापक रह चुके हैं ।
सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा से सन् १९५९ में प्रस्तुत पुस्तक का प्रथम संस्करण (जैन दर्शन) प्रकाशित हुआ था । इसका संशोधित एवं संवर्धित द्वितीय संस्करण (जैन धर्म-दर्शन) पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी ने सन् १९७३ में प्रकाशित किया था । वर्तमान प्रकाशन इसी का संशोधित एवं संवर्धित तृतीय संस्करण है। इस संस्करण के प्रकाशन की अनुमति प्रदान करने के लिए हम डॉ. मेहता के हृदय से आभारी हैं ।
श्री मोहनलाल खारीवाल, सी.ए., एच. सी. खींचा एण्ड कम्पनी, १५१, एवेन्यू रोड़, बेंगलोर - २, के उत्साह एवं उल्लासपूर्ण प्रयत्न के कारण ही यह प्रकाशन संभव हो सका है । एतदर्थ हम उनका हार्दिक आभार मानते हैं। इस ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए खींचा एण्ड खारीवाल चेरिटेबल ट्रस्ट, बेंगलोर ने अपना योगदान दिया एतदर्थ फाउण्डेशन ट्रस्ट का विशेष आभारी है । स्वर्गीय सेठ श्री छगनमलजी मूथा का परिचय प्रस्तुत करने के लिए श्री शान्तिलाल वनमाली शेठ का बहुत आभार मानते हैं। पुस्तक के स्वच्छ एवं शुद्ध मुद्रण के लिए योग एंटरप्राइजेज, पुणे के स्वत्वाधिकारी डॉ. सिद्धेश्वर तगवाले को हार्दिक धन्यवाद देते हैं ।
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