Book Title: Jain Dharm me Dev aur Purusharth
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 4
________________ [४] क्रम विषय पृष्ठ । क्रम विपय पृष्ठ ३४-गोत्रकमके वधके विशेष ५०-जीवोंके पाच प्रकारके भाव भाव . व भेद प्रभेट १४ ३५-अतरायकर्मके वधके ५१-पारणामिक भाव १४१ विशेप भाव ... ३६-पाप पुण्य भेट ६७ - अध्याय पांचवां। ३७-लेल्या । धर्म पुरुषार्थ । ३८-आठ कमौके उत्तरभेद ६९ | ५२-धर्म पुस्पार्थकी मुख्यता १४२ ३९-पुण्य पाप प्रकृति ७६ ५३-साधुका व्यवार धर्म १४२ ४०-चार प्रकारका बन्ध ७८ | ५५-गृहस्थ धर्म .१४३ ४१-आवाधाकालका नियम ८१ ५५-बारह व्रत ...१४९ ४२-चौदह गुणम्थान ८४ ५६-ग्यारह प्रतिमाएँ .. १५६ ४३-गुणस्थानोंमे प्रकृतिबंध ८८ अध्याय छठा। ४४-गुणस्थानोंम अबन्ध, वधव्युन्छित्ति . ९१ अर्थ पुरुषार्थ। ४५-कर्मोका उदय १०३ | ५७-अर्थ पुरुषार्थ कैसे कर १५९ ४६-गुणस्थानके उदयम्थान १०९५८-उद्यमके छ. प्रकार १५९ ४७-कर्मोकी सत्ता अथवा अध्याय सातवां। उनका सत्य १२१ ४८-आठों कर्मोकी उत्तर काम पुरुषार्थ। प्रकृतियोंकी सत्ता १२३ । ५९-पाचो इद्रियोंके विषयोंका अध्याय चौथा। उपयोग किस प्रकार के १६३ पुरुषार्थका स्वभाव और कार्य। अध्याय आठवां। ४९-पुम्षार्थ द्वारा सचित कर्ममे मोक्ष पुरुषार्थ । परिवर्तन १३१ | ६०-सिद्ध अवस्थाका स्वम्प १६७ शुद्ध करके पढ़इस पुस्तकम पृ० लाईन २१ मे Lifeless Bodies or Dead Bodies की जगह पर Living Bodies पढ ।

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