Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 7
________________ के रूप में अनुप्रेक्षाएँ और उनका महत्त्व (3-5), प्रत्येक प्रेरक (अनुप्रेक्षा) का विवरण (5), (i) सतत परिवर्तनशीलता या वस्तुओं की क्षणभंगुरता (अनित्य- अनुप्रेक्षा) (5-6), (ii) . मरण की अनिवार्यता का प्रेरक (अशरण- अनुप्रेक्षा) (6-7), (iii) पुनर्जन्म का प्रेरक (संसार-अनुप्रेक्षा) (7-8), (iv) एकाकीपन का प्रेरक (एकत्व-अनुप्रेक्षा) (8), (v) आत्मा और अनात्मा के बीच तात्त्विक भेद का प्रेरक (अन्यत्व-अनुप्रेक्षा) (8-9), (vi) शरीर की अशुचिता का प्रेरक (अशुचि-अनुप्रेक्षा) (vi) (9), विश्व की व्यवस्था का प्रेरक (लोक-अनुप्रेक्षा) (9-10), (vii) सम्यक्मार्ग को कठिनता से प्राप्त करने का प्रेरक (बोधिदुर्लभ-अनुप्रेक्षा)(1011), (ix) कर्मों के इहलोक और परलोक के दु:खों का प्रेरक (आस्रव-अनुप्रेक्षा) (11), (x-xi) कर्मों को रोकने की विधि का प्रेरक (संवर-अनुप्रेक्षा)- कर्मों को हटाने की विधि का प्रेरक (निर्जराअनुप्रेक्षा)- जिनदेव द्वारा धर्म का उपदेश देने का प्रेरक (धर्म- : अनुप्रेक्षा)(11-12), मुनि-जीवन का औपचारिक ग्रहण (1213), अंतरंग और बाह्य साथ-साथ रहते हैं (13-14), अंतरंग और बाह्य स्वरूप का अंगीकार (15), गृहस्थ की अपेक्षा मुनि जीवन की श्रेष्ठता (15-16), पाँच महाव्रत (16), (i) अहिंसा महाव्रत (16), (ii) सत्य महाव्रत (16-17), (ii) अस्तेय महाव्रत (17-18), (iv) ब्रह्मचर्य महाव्रत (18), (v) अपरिग्रह महाव्रत (18-20), तीन गुप्ति और पाँच समिति (2123), (i) ईयासमिति (23-25), (ii) भाषासमिति (25), (iii) एषणासमिति (25-27), (iv) आदाननिक्षेपणसमिति (27), (v) प्रतिष्ठापनसमिति (27), पाँच इन्द्रियों का नियंत्रण (2728), केशलोंच (28-29), षट् आवश्यक (29-31), (i) सामायिक (31), (ii) स्तुति (31-32), (iii) वंदना (32 (VI) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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