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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/14
प्रद्युम्नकुमार-शम्भूकुमार के पूर्वभव
तद्भव मोक्षगामी चरमशरीरी श्री प्रद्युम्नकुमार का जन्म होते ही उसके पूर्वभव के बैरी द्वारा उसका हरण हो जाने पर जब नारद श्री सीमंधर तीर्थंकर भगवान के समवसरण में यह शंका लेकर जाते हैं कि श्री प्रद्युम्नकुमार का हरण किसने किया ? क्यों किया? और उसने अपने पूर्वभव में ऐसा कौनसा जघन्य पाप किया था, जो तद्भव मोक्षगामी होते हुए भी उसका इसभव में जन्म होते ही हरण हो गया?
इसशंका के समाधान स्वरूप तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी की दिव्यध्वनि में श्री प्रद्युम्नकुमार-शम्भूकुमार के पूर्वभवों का जो वर्णन आया, उसका संक्षिप्त वृतान्त इसप्रकार है -
इस जम्बूद्वीप के मगध देश में, शालीग्राम नगर के सोमदत्त ब्राह्मण और उसकी पत्नी अग्निला के अग्निभूति एवं वायुभूति नाम के दो पुत्र थे, वे दोनों भाई वेद-विद्या में प्रवीण थे, उन्होंने अपनी विद्या के बल से अन्य ब्राह्मणों के प्रभाव को फीका कर दिया था। विद्या अभ्यास द्वारा उन्हें मद हो गया था। वे माता-पिता के प्रेम के कारण बहुत वाचाल और भोगों में आसक्त थे, वे ऐसा मानते थे कि सोलह वर्ष की नारी का सेवन ही स्वर्ग है। वे परलोक की सत्ता ही नहीं मानते थे, अत: उनको परलोक सुधारने की बात ही नहीं रुचती थी।
एक दिन उनके नगर-उद्यान में विशाल संघ सहित नंदिवर्द्धन नामक मुनिराज पधारे। वे श्रुतरूपी सागर के पारगामी थे। नगर के चारों वर्गों के मनुष्य उनकी वन्दना के लिए जाते देख उन ब्राह्मण-पुत्रों ने उनसे पूछा कि आज सभी लोग कहाँ जा रहे हैं ? तब एक सज्जन ब्राह्मण ने कहा कि मुनियों का संघ आया है, इसलिये सभी उनकी वन्दना के लिये जा रहे हैं। तब ब्राह्मण पुत्रों ने विचार किया कि हमसे अधिक बुद्धिमान कौन हो सकता है ? हम