Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 48
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/46 | ___मुनिराज के मुख से पूर्वभव की कथा सुनकर पूतिगंधा का मन संसार से अतिविरक्त हो गया और उसने मुनिराज से धर्म का उपदेश सुना तथा इन दुःखों से छूटने का उपाय पूछा - ___ मुनिराज ने सभी को संसार के दुःखों से छूटने के उपायस्वरूप धर्मोपदेश दिया और पूर्व में हुए पूतिगंध कुमार की घटना सुनाई, जिसका सार इसप्रकार है-'जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में शकटपुर देश के सिंहपुर नगर में सिंहसेन राजा के पुत्र पूतिगंध कुमार के शरीर से तेरी तरह ही बहुत दुर्गन्ध निकलती थी। . एक समय विमलवाहन मुनिराज को केवलज्ञान प्रकट होने पर.देवतागण आकाश मार्ग से केवलज्ञान कल्याणक का उत्सव मनाने जा रहे थे। उसी समय पूतिगंध कुमार राजभवन के शिखर पर बैठे थे। उन्होंने प्रभा से शोभित देवकुमारों को ज़ाते देखा और देखते ही मूर्छित हो गये। जब चन्दनादि शीतोपचार करने से उनकी मूर्छा दूर हुई तो उन्हें तुरन्त ही जातिस्मरण ज्ञान हो गया और वे अपने पिता के साथ केवली भगवान के दर्शन करने गये। दोनों पिता-पुत्र केवली भगवान के भक्तिभाव से दर्शन-पूजनादि करके उपदेश सुनने बैठ गये। उपदेश पूर्ण होने पर सिंहसेन महाराज ने भक्तिपूर्वक विमलवाहन जिनसज से अपने मन की बात पूछी कि मेरा पुत्र किस कारण से पूतिगंध हुआ और मूर्छितोपरान्त सचेत होकर यहाँ आया। कृपा करके सम्पूर्ण वृतान्त कहकर मुझे कृतार्थ करो। ... राजा के प्रश्न के उत्तर में जिनराज की दिव्यध्वनि में आया कि तेरे पुत्र ने पूर्वभव में मुनिराज की हत्या की होने से अनेक योनियों में भ्रमण करते हुए तुम्हारे यहाँ पूतिगंध हुआ और आकाश में जाते देवकुमारों को देखकर इसे जातिस्मरण ज्ञान होने से नरक की वेदना का स्मरण होने पर भयभीत होकर मूर्छित हुआ। ..... सिंहसेन राजा ने विमलवाहन जिनराज़ से पूछा कि पूर्वभव में पूतिगंध ने किस कारण से मुनिराज की हत्या की थी ? उत्तर में जिनराज की दिव्यध्वनि में आया कि विंध्याचल पर्वत पर एक दिव्य अशोकवन है। उसमें दो मदोन्मत्त

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