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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/50 का विवाह अर्ककीर्ति के साथ कर दिया। तब कितने ही समय अर्ककीर्ति श्वसुर के यहाँ रहा। - एक बार अर्ककीर्ति ने उपवास करके जिनमंदिर में भगवान की पूजा की और रात्रि समय मन्दिर में ही सो गया। वहाँ सिमलेखा नाम की एक विद्याधरी आई ओर निद्राधीन कुमार को लेकर विजयार्द्ध पर्वत के ऊपर जिनमंदिर में छोड़ गई। जब अर्ककीर्ति जागृत हुआ तब स्वयं को विजयार्द्ध के जिनमंदिर में जानकर वह वहाँ के मंदिर में दर्शन करने चला गया। उसके पुण्य के प्रभाव से वहाँ के वज्रमय कपाट खुल गये। उसको पुण्यवन्त जानकर वहाँ के राजसेवक उसे राजा के पास ले गये। राजा ने उसका स्वागत किया
और अपनी वीतशोका नाम की प्रिय पुत्री के साथ उसका विवाह कर दिया और अपनी अन्य इकतीस कन्याओं का विवाह भी उसके साथ कर दिया। अर्ककीर्ति कुमार ने पाँच वर्ष वहाँ भी सुखपूर्वक व्यतीत किये। ___ एक दिन पिता की याद आने पर वह अपने देश के लिये निकला। रास्ते में अंजनगिरी नाम के नगर में पहुँचा। वहाँ पागल हुए हाथी को वश में करके अपने पराक्रम से वहाँ के राजा की आठ कन्याओं से विवाह किया
और अपनी पुण्डरीकिणी नगरी में आ गया। . एक दिन कुमार अर्ककीर्ति ने नटनी का रूप धारण करके पिता की सभा में जाकर लोगों के मन में आश्चर्य उत्पन्न करने वाला नृत्य किया और तत्पश्चात् अपने पिता राजा विमलकीर्ति की गायों को घेर लिया। इस कारण राजा ने गायों को छुड़ाने के लिये उससे युद्ध किया। पिता-पुत्र आमने-सामने लड़ने लगे। परन्तु कुमार ने प्रथम ही अपना नामोल्लिखित बाण पिता को भेजा। उसे देखकर, पढ़कर पिता का हृदय आनन्द से भर गया और दोनों पिता-पुत्र एक-दूसरे से अत्यन्त स्नेह पूर्वक मिले, क्षेम-कुशल पूछा और आनन्द पूर्वकं राजभवन में गये।
राजा विमलकीर्ति ने अपने पुत्र के आगमन की खुशी में इच्छानुसार दान दिया और अपने विजयी प्रिय पुत्र अर्ककीर्ति को राज्य लक्ष्मी सौंपकर, स्वयं श्रीधर मुनिराज के समीप जिनदीक्षा अंगीकार कर आत्मसाधना में लग