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जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 17/32
आगामी जन्म में होनहार कृष्ण है। वह माता नंदियशा का पूर्वभव का विरोधी था । अतः वह गर्भ में आया तभी से राजा को रानी अरुचिकर हो गई; इस कारण रानी ने पुत्र को जन्मते ही छोड़ दिया । उस पुत्र का पालन रेवती नामक धाय ने किया और जब वह बड़ा हुआ, तब श्रेष्ठीपुत्र शंख के और इस निर्नामिक के स्नेह बढ़ गया; क्योंकि शंख तो होनहार बलभद्र का जीव था और निर्नामिक होनहार कृष्ण नारायण का जीव था ।
एक दिन निर्नामिक शंख के साथ मनोहर नामक उद्यान में गया। वहाँ निर्नामिक के छहों भाई भोजन कर रहे थे, उनसे शंख ने कहा - यह तुम्हारा छोटा भाई है इसे क्यों नहीं बुलाते ? इससे छहों बड़े भाइयों ने निर्नामिक को बुलाया और साथ भोजन करने लगे । निर्नामिक को साथ में भोजन करता देखकर माता नंदियशा को गुस्सा आ गया और उसने क्रोध में आकर निर्नामिक को लात मारकर उठा दिया। इससे निर्नामिक को बहुत दुःख हुआ और शंख भी खेद - खिन्न हुआ और वह निर्नामिक को लेकर द्रुमसेन नामक अवधिज्ञानी मुनिराज के पास गया व उनसे निर्नामिक के पूर्वभव पूछे।
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मुनिराज ने निर्नामिक के पूर्वभव के विषय में कहा कि गिरिनगर नाम के नगर का राजा चित्ररथ था । वह कुबुद्धियों के संग में माँसाहारी हो गया। उसके अमृत - रसायन नाम का रसोइया था, वह माँस की रसोई बनाने की विधि में प्रवीण था- इस कारण राजा ने उस पर प्रसन्न होकर उसे दस गाँव भेंट दे दिये ।
एक दिन राजा ने सुधर्म नामक मुनि के पास धर्म श्रवण करके माँस के दोष जानकर अपनी निन्दा करके अपने मेघरथ नाम के पुत्र को राज्य देकर तीन सौ राजाओं के साथ मुनि से दीक्षा ले ली। मेघरथ श्रावकव्रतों का धारक था। " मेरे पिता को इस रसोइया ने अभक्ष्य भोजन कराया है" - ऐसा जानकर क्रोधित होकर मेघरथ ने पिता द्वारा दिये हुए दस गाँवों में से नौ गाँव उससे वापिस छीन लिये। इससे रसोइया ने चित्ररथ मुनि के ऊपर बैर भाव कर लिया । इसलिये उसने बनावटी पक्का श्रावक बनकर मेघरथ के पिता चित्ररथ मुनि को विषमय कड़वी तुम्बी का आहार दिया । फलतः मुनि समाधिमरण करके