Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 32
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/30 . करूँगा' ऐसा झूठ वचन कहकर वह चोर उस स्त्री का कार्य देखने के लिये . छिपकर बैठ गया।' ___ जब मंगी का पति वज्रमुष्टि मुनिराज को पुष्प चढ़ाकर नमस्कार कर रहा था, तब मंगी पीछे से अपने पति को तलवार से मारने जा रही थी, उस समय गुप्त रूप से देखते हुए सूरसेन ने तुरन्त ही उस स्त्री का हाथ पकड़कर वज्रमुष्टि को बचा लिया और फिर स्वयं छिप गया। मंगी अपना दोष छिपाने के लिये मूर्छा का बहाना करके गिर पड़ी। यह देखकर वज्रमुष्टि ने कहा कि हे प्रिये ! तू. डर कैसे गई ?. यहाँ भय का कोई कारण नहीं है - ऐसा कहकर धैर्य बंधाकर मुनिराज को वंदन करके पत्नी को साथ लेकर वह अपने घर चला गया। ___इस प्रसंग को देखकर सूरसेन का चित्त संसार से विरक्त हो गया। सूरसेन चोर के जो छह भाई चोरी करने नगर में गये थे, वे चोरी करके बहुत सा द्रव्य लाये। और उसके सात भाग करके छोटे भाई सूरसेन से कहा कि ये सातवाँ भाग तुम्हारा है, सो तुम अपना हिस्सा संभाल लो।' तब सूरसेन ने अपना भाग नहीं लिया और कहा कि संसारी जीव स्त्री-पुत्रादिक के लिये धन उपार्जित करता है, परन्तु स्त्री की चेष्टा तो मैंने आज प्रत्यक्ष देखी है। तब उसके बड़े भाई सुभानु आदि ने पूछा कि तूने ऐसा क्या देखा है? तब उसने वज्रमुष्टि और मंगी (पति-पत्नी) का सम्पूर्ण वृतान्त कहा, जिसे सुनकर सातों भाई संसार से विरक्त होकर वरधर्म मुनिराज के समीप दीक्षित होकर मुनि हो गये और उनके साथ विहार कर गये। . . ___ नगर-नगर में विहार करते हुए, भव्य जीवों को मोक्षमार्ग का उपदेश देते हुए वे.सातों मुनिराज अपने गुरु के साथ एक बार फिर उज्जैनी आये। वज्रमुष्टि ने उन्हें देखा और उनको नमस्कार कर कम उम्र में वैराग्य होने का कारण पूँछा। तब उसे अपनी स्त्री का सर्व वृतान्त ज्ञात हुआ, जिससे वह भी संसार से विरक्त होकर मुनि हो गया। सूरसेन आदि सातों भाइयों की स्त्रियाँ भी अपने पति को संसार से विरक्त जानकर जिनदत्ता आर्यिका के समीप दीक्षित होकर आर्यिका हो गई थीं। वे भी एक समय उज्जैनी नगरी में आईं। तब मंगी भी उनके वैराग्य

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