Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 35
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/33 अपराजित विमान में बत्तीस सागर की स्थिति वाले अहमिन्द्र हुए और वह रसोइया मरकर तीसरे नरक गया और वहाँ तीन सागर तक नरक के दुःख भोगकर वहाँ से निकल कर तिर्यंच गतिरूप वन में बहुत भ्रमण करके मलय नामक देश के पलाश गाँव में यक्षदत्त के यहाँ यक्षलिक नाम का पुत्र हुआ। एक दिन यक्षलिक सामान की गाड़ी भरकर अपने छोटे भाई के साथ जा रहा था। वहाँ रास्ते में एक सर्पिणी थी। छोटे भाई के बारम्बार मना करने पर भी बड़े भाई यक्षलिक ने सर्पिणी के ऊपर गाड़ी चला दी, जिससे उसकी देह छूट गई और वह महा दुःख से अकाम निर्जरा करके मरण को प्राप्त हुई और वहाँ से श्वेतविक नाम की नगरी में वासव राजा की रानी वसुन्दरी के नंदियशा नाम की पुत्री हुई, जिसका विवाह राजा गंगदेव से हुआ। कितने ही दिन पश्चात् यक्षलिक मरकर रानी नंदियशा के निर्नामिक नाम का पुत्र हुआ-इस कारण पूर्वभव के विरोध से नंदियशा पुत्र निर्नामिक के प्रति द्वेष रखती है। ___मुनिराज के पास से यह कथा सुनकर राजा गंगदेव आदि सब संसार से विरक्त होकर अपने देवनंदि पुत्र को राज्य सोंपकर दो सौ राजाओं के साथ मुनि हो गये। साथ ही उनके छहों पुत्र और निर्नामिक तथा श्रेष्ठिपुत्र शंखादि भी मुनि हुए। रानी नंदियशा, रेवती धाय और बंधुमति सेठानी ये तीनों भी आर्यिका हो गईं। आगे अतिमुक्त मुनिराज वसुदेव से कहते हैं कि निर्नामिक मुनि ने उग्र तप करके नारायण पद का निदान किया है और वह तप के प्रभाव से समाधिमरण करके स्वर्ग में गया है। स्वर्ग से चयकर रेवती धाय भद्रलपुर में सुदृष्टि नामक सेठ की अलंका नाम की स्त्री हुई। रानी नंदियशा देवकी हुई और उसके पूर्वभव के छहों पुत्र स्वर्ग से आकर इस भव में देवकी के तीन युगल पुत्र होंगे, वे तद्भव मोक्षगामी, गुणों के समुद्र होंगे और अलंका नामक सेठानी के तीन मृतक युगल पुत्र होंगे।

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