Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 36
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 17/34 इन्द्र की आज्ञा से देव अलंका के यहाँ देवकी के तीन युगल पुत्रों को ले जायेगा और अलंका के मृतक तीन युगल पुत्र यहाँ लायेगा। तेरे पुत्र भद्रलपुर में सुदृष्टि सेठ के घर अलंका सेठानी के यहाँ जवान होंगे और श्री नेमिनाथ जिनेश्वर के शिष्य होकर वे तीनों युगल मुनि तेरे घर आहार के लिये आयेंगे। उनके प्रति तुझे पुत्रवत् स्नेह उत्पन्न होगा । 'वे छहों महामुनि उग्रतप करके कर्मों का अभाव करके उसी भव में सिद्धधाम पधारेंगे।' तथा सात चोर भाइयों में से बड़ा भाई सुभानु श्रेष्ठपुत्र शंख रोहिणी. का पुत्र बलभद्र होगा और मांसभक्षक, मुनिहिंसक रसोइया - निर्नामिक का जीव देवकी का सातवाँ पुत्र श्रीकृष्ण नारायण होगा । - इस प्रकार वसुदेव अपने तीन युगल पुत्रों बलदेव, नारायण, देवकी के पूर्वभव आदि का वृतान्त अतिमुक्त मुनि के द्वारा सुनकर परम हर्षित हुए और मुनिराज को बारम्बार वंदन कर अपने घर गये । आश्चर्य है कि सप्त व्यसनों में लिप्त सात चोरभाई एक अन्य स्त्री के दुश्चरित्र को देखकर मुनिराज के धर्मोपदेश द्वारा आत्मोन्नति के मार्ग में प्रयाण कर गये । ". अहो ! देखो तो सही ! पूर्वभव में संकल्प पूर्वक नागिन को गाड़ी के नीचे दबाकर मार देने वाला (श्री कृष्ण का जीव) आगामी भव में उसी का पुत्र होकर जन्मता है। क्रोध से जिस नागिन के जीव को मारा वही माता बनी । अरे देखो परिणामों की विचित्रता ! पूर्वभव में जिसने मुनिराज को कड़वी तुम्बी का आहार करा मुनिहिंसा जैसा निकृष्ट पाप किया था, तथा मांसभक्षी था, वही रसोइया ( कृष्ण का जीव) भविष्य में तीर्थंकर होगा । अहा ! देखो तो जीव की शक्ति ! पूर्व का महापापी जीव भी अन शक्ति से परिपूर्ण ज्ञायक स्वभाव की महिमा लाकर स्वभावसन्मुख दृष्टि करके भगवान बन जाता है। - हरिवंशपुराण पर आधारित शुद्ध अनुभूति प्रगटाना पुनर्जन्म है । -- - पूज्य स्वामीजी

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