Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 43
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/41 अशोक-रोहिणी की कथा (वासुपूज्य भगवान के गणधर अमृताश्रव की कथा) इस देश के हस्तिनापुर नामक नगर में वीतशोक नाम का महागुणवान राजा रहता था। उसकी विद्युतप्रभा नाम की सुन्दर और गुणवान रानी थी। इन दोनों के अशोक नाम का गुणवान पुत्र था। उस समय में चम्पा नाम की एक नगरी थी। उसके राजा का नाम मधवा था उसकी श्रीमती नाम की रानी थी। उनके आठ पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री का नाम रोहिणी था। रोहिणी गुणवान, रूपवती युवती थी। एक बार वह अष्टान्हिका पर्व में उपवास करके, उत्साह से जिनेन्द्र भगवान की पूजा करके, जिनधर्मी साधुओं को नमस्कार करके सभा भवन में बैठे हुए मातापिता आदि के समीप आई। पुत्री को युवा हुई देखकर पिता विचारने लगा कि इस रूपवान कन्या को इसी के समान रूपवान किस वर को प्रदान करूँ? राजा ने अपने मंत्री को बुलाया और कन्या के लिये वर खोजने के विषय में पूछा तो मंत्री ने कहा कि इस सुन्दर कन्या के योग्य वर शोधने के लिये स्वयंवर मण्डप का आयोजन करके कन्या की पसन्द के योग्य वर से इसका विवाह करना उचित होगा। यह बात राजा को रुचिकर प्रतीत हुई। अतः उन्होंने चम्पा नगरी में अपनी योग्य पुत्री रोहिणी के स्वयंवर मण्डप का आयोजन किया और देश-विदेश के राजकुमारों को पधारने हेतु आमन्त्रण भेजा। अनेक देशों के राजकुमार चम्पा नगरी आये। उनके लिये उचित आवास व खान-पान की व्यवस्था की गई और उनके लिये मणिमय सिंहासनों से सुसज्जित सभा मण्डप तैयार किया गया। ____ सभी राजकुमार सभा मण्डप में आकर अपने-अपने निर्धारित स्थान पर विराजमान हो गये। रोहिणी भी बहुमूल्य वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित होकर अपनी दासियों सहित सभा मण्डप में आ पहुँची। उस समय रोहिणी का रूप साक्षात् इन्द्रानी तुल्य लग रहा था। अतः समस्त राजकुमार उसे उत्सुकता से टकटकी लगाकर देखने लगे। दासी एक-एक राजकुमार का

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