Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/31 का वृतान्त जानकर संसार से विरक्त हुई। और अपने खोटे चरित्र की निन्दा करती हुई गृहत्याग कर आर्यिका हो गई। .. ये सभी महातप करके प्रथम स्वर्ग में एक सागर की आयु वाले देव हुए। तत्पश्चात् धातकी खण्ड के भरत क्षेत्र में नित्यलोक नामक नगर में चित्रचूल राजा की मनोहरी रानी के सातों भाइयों में से बड़ा भाई सुभानु का. जीव प्रथम स्वर्ग से आंकर चित्रांगद नामक पुत्र हुआ और छहों भाई भी उन्हीं माता-पिता के यहाँ तीन युगल पुत्र हुए। इस प्रकार यहाँ भी वे सांतों भाई. सहोदर ही हुए। सातों भाई महारूपवान समस्त विद्या के पारगामी मनुष्यों के शिरोमणी हुए। . इधर मेघपुर नामक नगर के राजा धनंजय की धनश्री नाम की रूपवान पुत्री पृथ्वी पर बहुत प्रसिद्ध थी। उसके विवाह हेतु आयोजित स्वयंवर में समस्त विद्याधर कुमार आये थे। कन्या धनश्री ने अपने मामा के पुत्र हरिवाहन को वरमाला पहिनाई, इसे देखकर समस्त राजा क्रोधयुक्त हो गये कि यदि धनश्री को हरिवाहन को ही वरमाला पहिनानी थी, तो हम सबको किसलिये बुलाया गया? इस प्रकार क्रोध से कन्या के लिये वे राजा परस्पर लड़ने लगे और उसमें अनेक सामन्तों का नाश हुआ। . इस प्रसंग को देखकर राजा चित्रचूल के सातों राजकुमारों ने विषयभोगों को पाप का कारण अर्थात् दुःखदायक जानकर संसार से विरक्त हो भूतानन्द केवली के समीप मुनिव्रत धारण किये और आराधना करके सातों भाई चौथे स्वर्ग में सात सागर की आयु वाले देव हुए। स्वर्ग का सुख भोगकर वहाँ से चयकर चित्रांगद नाम का बड़ा भाई भरत क्षेत्र के हस्तिनापुर में सेठ श्रोतवाहन की स्त्री बंधुमति के शंख नाम का पुत्र हुआ और छोटे छह भाइयों ने भी उसी नगरी के राजा गंगदेव की रानी नंदियशा के तीन युगल पुत्रों के रूप में जन्म लिया। रानी नंदियशा के चौथे गर्भ धारण में सातवाँ पुत्र निर्नामिक आया, वह .

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84