________________
__ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/26 करके स्वर्ग में उस देव की देवी हुई, जो देव पूर्व में इसका (नागश्री का) पति था और जिसका नाम सोमभूति ब्राह्मण था। वहाँ की आयु पूर्ण करके वहाँ से च्युत होकर सोमभूति का जीव तो कुंती पुत्र अर्जुन हुआ और सोमदत्त, सोमदेव ये दोनों भी रानी कुंती के पुत्र युधिष्ठर और भीम हुए और धनश्री, मित्रश्री के जीव रानी माद्री के नकुल और सहदेव नाम के पुत्र हुए और नागश्री का जीव राजा द्रुपद की रानी दृडरथा के द्रोपदी नाम की पुत्री हुई। पूर्व भव के स्नेहवश अर्जुन के साथ उसका विवाह हुआ। विवाह के समय जब द्रोपदि अर्जुन के गले में वरमाला पहना रही थी, तभी अर्जुन के चारों भाई भी उसके ही पास खड़े थे और वरमाला पहनाते समय वरमाला टूट कर विखर गई और फूल पास खड़े चारों भाइयों के ऊपर जा गिरे। तब वहाँ उपस्थित लोग यह कहकर उसकी हँसी करने लगे कि “द्रोपदि ने तो पाँचों का वरण किया है। इसीलिए लोक में उसे पंचभरतारी के अपमान से अपमानित होना पड़ा।
पूर्वभव का यह वृतान्तं श्रीमद्नेमिजिनेन्द्र की दिव्यध्वनि से पाण्डवों ने जाना और यह भी जाना कि युधिष्ठर, भीम, अर्जुन तीनों भाई इसी भव से मोक्ष जायेंगे। और नकुल-सहदेव सर्वार्थसिद्धि जाकर एक भव धारण करके मोक्ष जायेंगे। द्रोपदी शुद्ध तप के प्रभाव से अच्युत स्वर्ग में देवी होगी और वहाँ से मनुष्य होकर निरंजन धाम प्राप्त करेगी। इस प्रकार पूर्व की भवावली सुनकर उन्होंने संसार से विरक्त होकर तत्काल जिनेश्वर के समीप संयम अंगीकार किया। माता कुंती, द्रोपदी, सुभद्रा आदि अनेक रानियाँ राजमति आर्यिका के समीप आर्यिका हो गईं। ..
द्रोपदि ने दुर्गन्धा के भव में आर्यिका होने पर भी वैश्या के साथ पाँच पुरुषों को देखकर उसे सौभाग्यशाली माना, इसी से उसे अपयश प्रकृति का बंध हुआ इसीलिए वह लोक में पंच भरतारी कहलाई और नागश्री के भव में मुनिराज को विषमय आहार दिया जिसके फल में सागरों तक नरकादि के दुःखों को भोगा। अत: ऐसा जानकर परिणाम नहीं बिगाड़ना- यह बोध है।
- हरिवंश पुराण से साभार