Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/११
अंजना चरित्र प्रीति और अप्रीति -
“यह बात उस समय की है, जब भगवान श्री मुनिसुव्रतनाथ का धर्मतीर्थ चल रहा था। अनंतवीर्य केवली के द्वारा धर्मोपदेश का श्रवण कर हनुमान, विभीषण इत्यादि ने व्रत अंगीकार किये, उनमें भी हनुमान का शील एवं सम्यक्त्व विशेष प्रशंसनीय है।"
- इस प्रकार भगवान महावीर की धर्म सभा में गौतम गणधर से हनुमान की प्रशंसा सुनकर राजा श्रेणिक ने प्रश्न किया -
"हे प्रभु ! ये हनुमान किसके पुत्र थे, इनका जन्म कहाँ हुआ था ? कृपा कर बतलाने का कष्ट करें।
राजा श्रेणिक के इस प्रश्न को सुनकर “जिन्हें सत्पुरुषों की कथाओं से विशेष अनुराग है" - ऐसे गौतम गणधर अपनी सुमधुर वाणी में इस प्रकार कहने लगे -
भरतक्षेत्र की दक्षिण दिशा में विद्याधर राजा महेन्द्र राज्य करते थे, उन्होंने एक महेन्द्रपुर नामक सुन्दर नगर की स्थापना की थी। राजा महेन्द्र की जीवन संगिनी का नाम हृदयवेगा था, जिससे अरिन्दम आदि सौ पुत्र एवं अंजनासुन्दरी नामक एक महागुणवान कन्या का जन्म हुआ।
एक बार अंजना सुन्दरी की यौवनावस्था देखकर राजा महेन्द्र को उसके विवाह की चिन्ता उत्पन्न हुई। ,
अत: उन्होंने अपने बुद्धिमान मंत्रियों को बुलाकर उनसे अंजना सुन्दरी के वैवाहिक सम्बन्ध के संदर्भ में विचार-विमर्श किया कि पुत्री अंजना का शुभ-विवाह किसके साथ करना उचित है ?
राजा द्वारा पूछे गये प्रश्न के प्रत्युत्तर स्वरूप किसी ने लंकाधिपति रावण के नाम का तो किसी ने इन्द्रजीत का तो किसी ने मेघनाथ के नाम का प्रस्ताव रखा।