Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/१३ महामंगल स्वरूप है। इस पावन अवसर पर इन्द्रादि देव तो नंदीश्वर द्वीप में विराजमान शाश्वत जिन-बिम्बों के दर्शन-पूजनार्थ जाते हैं और मानव समाज भी अपनी-अपनी शक्ति एवं भावनानुसार इस पर्व को उत्साह पूर्वक मनाता है। उस समय महेन्द्रनगर निवासी विद्याधर भी पूजन-सामग्री लेकर कैलाशपर्वत पर पहुंचे। कैलाशपर्वत भगवान ऋषभदेव की पवित्र निर्वाणस्थली होने से परम पावन है - पूजनीय है। कुमारी अंजना सहित राजा महेन्द्र ने भी वहाँ पहुँचकर जिनप्रभु के दर्शन-पूजन किये, तत्पश्चात् गिरिराज के प्राकृतिक सौन्दर्य का अवलोकन करने के लिये राजा महेन्द्र एक स्वच्छ शिला पर बैठ गये। उसी समय कुमार पवनंजय सहित राजा प्रहलाद भी चक्रवर्ती भरत द्वारा निर्मित जिन-बिम्बों के दर्शन-पूजनार्थ वहीं पधारे हुये थे और दर्शन-पूजन से निवृत्त हो, गिरिराज पर ही घूम रहे थे कि अनायास राजा महेन्द्र की नजर उन पर पड़ी। राजा महेन्द्र ने प्राथमिक अभिवादन के पश्चात् उनसे कहा – “हे राजन! बहुत दिनों से एक विचार मन में चल

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84